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भावार्थ- जिस प्रकार सच्चे शास्त्रों का अध्ययन कर मनुष्य अपने आत्मतत्त्व को, जीवादि पदार्थों को तथा हेय-उपादेय को जानते हैं, उसी प्रकार अच्छे नीतिशास्त्रों का अध्ययन कर लौकिक कार्य-अकार्य को भी जानते हैं, अत: मैं 'नीति-संग्रह' को कहता
यहाँ 'कहेज पद का सृजन यह स्पष्ट करने के लिए हुआ है कि मैं यहाँ कही जाने वाली नीतियों का संयोजक मात्र हूँ, मूल कर्ता नहीं।
सव्वे रोगा भया सव्वे, सव्वे दुक्खा य दुग्गिहा। जिणिंदत्थुदि मत्तेण, णस्सेंति णत्थि संसओ ॥३॥
अन्वयार्थ- (सव्वे रोगा) सभी रोग (भया सव्वे) सभी भय (सव्वे दुक्खा) सभी दु:ख (य) और (दुग्गिहा) दुर्ग्रह (जिणिंदत्थुदि मत्तेण) जिनेन्द्र स्तुति मात्र से (णस्सेंति) नष्ट हो जाते हैं इसमें] (संसओ) संशय (णत्थि) नहीं है ।
भावार्थ- सभी रोग (बीमारियाँ), सभी भय, सभी दु:ख और सभी दुर्ग्रह (खोटे ग्रह) वीतरागी जिनेन्द्र भगवान की स्तुति करने से ही नष्ट हो जाते हैं, इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं करना चाहिए ।
जो करेदि जिणिंदाणं, पूयणं ण्हवणं जवो ।
सो पत्तूण महाविहवं, सग्गं मोक्खं च पावदे ॥४॥ ___अन्वयार्थ- (जो) जो मनुष्य (जिणिंदाणं) जिनेन्द्र भगवान का (पूयणं) पूजन (ण्हवणं) अभिषेक (जवो) जप (करेदि) करता है, (सो) वह (महाविभवं) महावैभव को (पत्तूण) प्राप्तकर (सग्गं) स्वर्ग (च) और (मोक्खं) मोक्ष को (पावदे) पाता है ।
भावार्थ- जो विवेकी मनुष्य प्रतिदिन अत्यन्त भक्तिभाव से जिनेन्द्र भगवान का दर्शन, पूजन, स्तवन, अभिषेक और जप
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