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________________ ५२ समत्वयोग-एक समनवयदृष्टि इंग्लेण्ड की एक पत्रिका 'टाइम एण्ड टाइड' के अनुसार साम्यवाद की स्थापना के लिए दस करोड़ नर-बलियाँ हो चुकी हैं । उसके बाद भी जो व्यवस्था साम्यवादी देशों में प्रतिस्थापित हुई वह उस स्वप्न को साकार नहीं कर पायी जो मार्क्स का था । एक ऐसे समाज का जिसमें व्यक्ति का विकास ही सारी समष्टि का विकास हो, व्यक्ति की स्वतन्त्रता ही सारी समष्टि की स्वतन्त्रता हो, हर व्यक्ति को सर्वतोमुखी विकास का अवसर हो, गाँवों और शहरों में, उद्योग और कृषि में आन्तरिक अभेद विकसित हो, राजसत्ता का प्रभाव अल्पतर होता जाय । उसके स्थान पर एक ऐसे समाज का विकास हुआ, जिसमें सर्वहारा तो सर्वहारा ही रहा, एक नया वर्ग पैदा अवश्य हुआ जिसने पूँजीपतियों तथा राजनेताओं दोनों वों की सत्ता अपने हाथों में अधिकृत कर ली और वह वर्ग था नौकरशाही का । आर्थिक-राजनैतिक सत्ता का केन्द्र राज्य बन गया और राज्य के केन्द्र बन गये कुछ चुने हुए व्यक्ति । यह जो नया वर्ग था, सम्पूर्णतः तानाशाह था । इसने नितान्त सिद्धान्तहीन अनैतिकता के साथ हिंसा के सारे साधनों का प्रयोग अपने विरोधी दलों और व्यक्तियों को कुचलने में किया । स्टालिन के समय में किसानों का विद्रोह जिस क्रूर रक्तपिपासा के साथ कु चला गया उसका समानांतर उदाहरण विगत इतिहास में हूणों और तातारों के शासन काल में ही मिलता है । मार्क्स का जीवन परम कारुणिक है । मानवमात्र के पीड़ित जीवन को देखकर उसके अन्तःकरण में जो करुणा का स्फोट हुआ वह एक सीमा तक बुद्ध की विश्वकरुणा की ही प्रतिकृति है । उसके कारण, निवारण और साधनों की खोज भी बुद्ध के चार आर्य सत्यों की तरह सीधी और सपाट है । बुद्ध ने जैसे आत्मा, ईश्वर आदि से सम्बद्ध प्रश्नों को अव्याकृत कह कर हटा दिया था, कुछ वैसे ही मार्क्स धर्म को अफीम कह कर हटा देता है, क्योंकि जो धर्म का ज्ञात रूप है वह अन्धविश्वास, भाग्यवाद एवं निष्क्रियता का समर्थक है तथा जो मूल धर्म है वह जन-सामान्य तक पहुँच ही नहीं पाया है । वैसी ही स्थिति बुद्ध की रही होगी जब उन्होंने इन प्रश्नों को ही हटाया क्योंकि वे जानते थे कि उनकी भूमिका तक लोक-दृष्टि पहुँच नहीं पायेगी और लोक-दृष्टि तक उतर कर उनके शब्द अपनी अर्थवत्ता खोकर नये अंध-विश्वासों, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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