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________________ समत्वयोग का महत्त्व अटपटे प्रश्नों के काँटों को बुहारने - झाड़ने का दुःसाध्य पराक्रम करने की अपेक्षा जैसे विवेकी पुरुष अपने पैरों में जूते पहनकर उन काँटों से सहज ही अपना बचाव कर लेता है वैसे ही समतायोगी बनकर सहज ही अपनी सुरक्षा कर सकता है। समतायोग की सबसे बड़ी उपलब्धि है समागत प्रतिकूलता को प्रसन्नता से सहने की क्षमता तथा दूसरों की प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल देने की शक्ति । इस प्रकार समतायोग जीवन में आ जाने पर व्यक्ति की जीवनदिशा ही बदल जाती है । समतायोग का उद्देश्य साधक को समभाव से ओतप्रोत कर देना है । उसके मन, वचन, काया, व्यवहार और अध्यात्म में समतारस भली भाँति आ जाए, उसे सांसारिक एवं पौद्गलिक वस्तुओं या बातों में रस न रहे, उसके आन्तरिक जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, राग, द्वेष, अज्ञान, दुराग्रह, मिथ्यात्व, अन्धश्रद्धा आदि के त्याग की मात्रा बढ़ती जाए, लोगों के प्रति विरक्ति हो, आत्म-भावों में स्थिरता बढ़े, यही समतायोग का प्रयोजन है । समभावो सामाइयं तण-कंचणसत्तु-मित्त-विसउ-त्ति । णिरभिसंगचित्तं उचितपवित्तिपहाणं च ॥ समत्व-योग का मुख्य लक्षण समभाव है । तृण और कंचन, शत्रु और मित्र आदि विषमताओं के प्रसंगों पर समभाव से, अपने चित्त को आसक्ति रहित रखना और उचित प्रवृत्ति करना ही इसका प्रधान उद्देश्य है । अतः समभाव की प्राप्ति, समता का अनुभव, प्राणिमात्र में समत्व की प्रवृत्ति आदि ही समतायोग का उद्देश्य हो सकता है । कोई भी साधक इस समत्वयोग को ठीक ढंग से सभी पहलुओं से हृदयंगम करके इसके अनुसार अपना दैनिक साधनाक्रम बनाये, जीवन को इसी साँचे में ढाले तो एक न एक दिन वह समत्व के उच्च शिखर को छू सकेगा, वीतरागता के प्रासाद के पवित्र स्वर्णकलश का स्पर्श कर सकेगा। समझने की बात यह है कि समताभाव कोई निष्क्रिय वृत्ति या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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