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________________ समत्वयोग- एक समनवयदृष्टि ८०१ " योऽनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरुते श्रमम् । स जीवन्नेव गच्छाति सान्वयः ॥ शुद्रत्वमाशु महावीर ने अवर्णों को सामाजिक महत्त्व प्रदान करने के लिए शूद्रों को प्रवज्या का विधान किया । 'उत्तराध्ययन' में हरिकेशबल नामक चाण्डाल के गुण सम्पन्न मुनि होने का उल्लेख है :"सोवागकुलसंभूओ गुणुत्तरधरो मुणी । हरिएसबलो नाम आसि भिक्खू जिइन्दिओ ॥ १० जन्म के आधार पर मानी गई वर्ण-व्यवस्था का महावीर ने घोर विरोध किया । उन्होंने स्पष्ट कहा कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र यह वर्ण व्यवस्था कर्म के आधार पर ही है :-- "कम्मुणा बभ्भणो होई, कम्मुणा होई खत्तिओ । इसो कम्पुणा होई, सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥३ इस प्रकार मानव-मानव में ऊँच-नीच की भावना को छोड़कर समान, सहृदय व्यवहार करना समता का निर्मल रूप है । आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । अपने सुख-दुःख के समान दूसरे के सुख-दुःख का भी अनुभव करना, मानव-जीवन की परम श्रेष्ठ अनुभूति है । कृष्ण ने कहा था " हे अर्जुन ! मुझे वह योगी परम श्रेष्ठ लगता है जो विश्व के समस्त प्राणियों के सुख-दुःख को अपने जैसा अनुभव करता है" : ११४ "आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन । सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥ ४ महावीर ने कहा है 1 " सव्वे पाणा पियाउआ सुहसाया दुक्खपडिकूला " अर्थात समस्त प्राणियों को अपना जीवन प्रिय है, उन्हें सुख अच्छा लगता है और दुःख प्रतिकूल । १. मनुस्मृति, २-१६८. ३. उत्तराध्ययन २५-३३. ५. आचारांग सूत्र १-२-३ Jain Education International २. उत्तराध्ययन १२-१. ४. श्रीमद् भगवद्गीता ६-३२. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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