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समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि पदार्थों के अनन्त धर्मों में से हम एक समय में कुछ धर्मों का ही ज्ञान कर सकते हैं, और दूसरों के समक्ष भी कुछ धर्मों का प्रतिपादन कर सकते हैं। . ___ स्याद्वाद की शैली सहानुभूतिमय है। इसलिए उसमें समन्वय की क्षमता है। उसकी मौलिकता यही है कि अन्य वादों को वह उदारता के साथ स्वीकार करता है, लेकिन उनको उसी रूप में नहीं, उनके साथ रहनेवाले आग्रह के अंशों को छोड़कर उन्हें वह अपना अंग बनाता है। स्याद्वाद दुराग्रह के लिए नहीं, किन्तु ऐसे आग्रह के लिए संकेत करता है, जिसमें सम्यक् ज्ञान के लिए अवकाश हो । ___ बौद्धिक स्तर में इस सिद्धान्त को मान लेने से मनुष्य के नैतिक और लौकिक व्यवहार में एक महत्त्व का परिवर्तन आ जाता है। चारित्र ही मानवजीवन का सार है। चारित्र के लिए मौलिक आवश्यकता इस बात की है कि मनुष्य एक ओर तो अपने को अभिमान से पृथक् रखे, साथ ही हीन भावना से अपने को बचाये । स्पष्टत: यह मार्ग कठिन है। वास्तविक अर्थों में जो अपने स्वरूप को समझता है दूसरे शब्दों में आत्मसम्मान करता है
और साथ ही दूसरे के व्यक्तित्व को भी उतना ही सम्मान देता है, वही उपर्युक्त दुष्कर मार्ग का अनुगामी बन सकता है। इसीलिए समग्र नैतिक समुत्थान में व्यक्तित्व का समादर एक मौलिक महत्त्व रखता है। अनेकान्त दर्शन का अत्यन्त महत्त्व इसी सिद्धान्त के आधार पर है कि उसमें व्यक्तित्व का सम्मान निहित है।
दार्शनिक जगत् के लिए जैन दर्शन की यह देन अनुपम, अद्वितीय है। इस सिद्धान्त के द्वारा विविधता में एकता और एकता में विविधता का दर्शन कर जैन दर्शन ने विश्व को नवीन दृष्टि प्रदान की है।
सभी दर्शनों के गर्भ में समता के बीज छिपे हुए हैं । अंकुरित और पल्लवित दशा में भाषा और अभिव्यक्ति के आवरण मौलिक समता को ढाँककर उसमें भेद किए हए हैं। भाषा के आवरण को चीरकर झाँक सकें तो हम पाएंगे कि दुनिया के सभी दर्शनों के अन्त:स्तल उतने दूर नहीं हैं, जितने दूर उनके मुख हैं। अनेकान्त का हृदय यही है कि हम केवल मुखको प्रमुखता न दें, अन्तःस्तल का भी स्पर्श करें । स्याद्वादी का समता भाव अन्तर और बाह्य जगत में एक समान होता है।
अनेकान्तवाद का आलोक हमें निराशा के अन्धकार से बचाता है। वह हमें ऐसी विचारधारा की ओर ले जाता है, जहाँ सभी प्रकार के विरोधों का उपशमन हो जाता है। यह समस्त दार्शनिक समस्याओं, उलझनों, और भ्रमणाओं का समाधान प्रस्तुत करता है।
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