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________________ १७६ समत्व योग - एक समन्वय दृष्टि जीव इनमें से निवृत्त नहीं हो तबतक वह संयम पालन नहीं कर सकता। अत: तबतक उसे राग और द्वेष के निमित्त प्राप्त होते ही रहेंगे । इसलिए इन्द्रिय और मन पर संयम रखने की विशेष आवश्यकता है। चित्त में अन्य जीवों के प्रति विविध प्रकार के भाव उत्पन्न होते है । इनमें शुभ भावों में मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ इन चारों पर विशेष जोर रखा गया है । जैन धर्म में इन चारों भावनाओं का परिचय धर्म ध्यान भावनाओं के रूप से दिया गया है । इन भावनाओं की वृत्ति रखने से आर्त और रौद्र ध्यान दूर होने लगते हैं। दूसरे का हित चिंतन करना वही मैत्री हैं। दूसरों के गुण देखकर आनन्द अनुभव होना वह प्रमोद है । दूसरे के दु:ख देखकर दुःखित होना और उन्हें दूर करने के लिए चिंता करना वही करुणा है और अन्य लोग अपनी हित शिक्षा को लक्ष्य में न ले तो उदासीनता भाव धारण करना वही माध्यस्थ है। - शास्त्रकारों ने चित्त में उठते संकल्प विकल्पो का प्रमुख चार रूप से परिचय दिया है (१) आर्त्त-ध्यान (२) रौद्र ध्यान (३) धर्म-ध्यान और (४) शुक्ल ध्यान । आर्त और रौद्र ध्यान अशुभ ध्यान हैं और त्याग योग्य है। आर्त ध्यान के चार उपविभाग भी बताए गया हैं (२) अनिष्ट संयोग जनित (२) इष्ट वियोग जनित (३) प्रतिकूल वेदना जनित और (४) निंदाजनित । इसी तरह रौद्र ध्यान के भी चार प्रकार बताये हैं (१) हिंसानंद (२) मृषानंद (३) चौर्यानंद (४) परिग्रहानंद । जबतक आर्त्त-ध्यान और रौद्र-ध्यान जैसे अशुभ ध्यान चित्त से निकल नहीं पाते तब तक व्यक्ति शुभ ध्यान की और अभिमुख नहीं हो सकते । सामायिक का आचरण करने वाले व्यक्ति के लिए अशुभ ध्यान का त्याग अनिवार्य है। तदुपरांत सामायिक का आचरण करने वाले व्यक्ति को सावध योग का भी पालन करना चाहिए यानि कि पापमय प्रवृत्तियों से निवृत्त होना चाहिए । प्राणातिपात आदि अठारह प्रकार के पाप स्थान शास्त्रकारों ने बताये हैं । इनमें से जब तक निवृत्त न हो सकें तब तक अच्छी तरह से सामायिक का पालन नहीं हो सकता इससे यह प्रतीति होती है कि सच्चा सामायिक करने के लिए मन, वचन और काया को बहुत सी पूर्व तैयारियाँ करनी पड़ती है। सामायिक के भेद : समता भाव में रमण करनेवाले सभी जीवों का समता भाव एक ही प्रकार का नहीं होता। इसी के कारण सामायिक के प्रकार भी अलग-अलग हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002545
Book TitleSamatvayoga Ek Samanvay Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherNavdarshan Society of Self Development Ahmedabad
Publication Year
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size15 MB
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