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जैन दर्शन में समत्व प्राप्त करने का साधन रत्नत्रय
१६३ सम्यक् चारित्र या शील, मन, वचन और कर्म के माध्यम से वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में समत्व की संस्थापना का प्रयास है, वह व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों में एक सांग सन्तुलन स्थापित कर उसके आन्तरिक संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया कदम है। ___ इतना ही नहीं, वह व्यक्ति के सामाजिक पथ को भी संस्पर्श करता है। व्यक्ति और समाज के मध्य तथा समाज और समाज के मध्य होनेवाले संघर्षों की सम्भावनाओं के अवसरों को कम कर सामाजिक समत्व की संस्थापना भी सम्यक चारित्र का लक्ष्य है।
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