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तृतीय अध्याय जैन दर्शन में समत्व प्राप्त करने का साधन रत्नत्रय
(ज्ञान, दर्शन, चारित्र) मोक्ष क्या है, यह एक चिरन्तन प्रश्न है। यह प्रश्न लाखों वर्षों से होता चला आया है ओर लाखों वर्षों तक होता रहेगा। आत्मवादी दर्शन के समक्ष दो ध्रुव केन्द्र हैं आत्मा और उसकी मुक्ति । मोक्ष क्या वस्तु है ? इस प्रश्न के उत्तर में अध्यात्मवादी दर्शन घूम-फिर कर एक ही बात
और एक ही स्वर में कहते हैं कि मोक्ष आत्मा की उस विशुद्ध स्थिति का नाम है - जहाँ आत्मा सर्वथा अमल एवं धवल हो जाता है। मोक्ष में एवं मुक्ति में जीवन का विसर्जन न होकर उसके प्रति मानव - बुद्धि में जो एक प्रकार का मिथ्या दृष्टिकोण है, उसी का विसर्जन होता है। मिथ्या दृष्टिकोण का विसर्जन हो जाना, साधक जीवन की एक बहुत बड़ी उत्क्रान्ति है। जैन दर्शन के अनुसार मिथ्यात्व के स्थान पर सम्यक् दर्शन का, मिथ्या ज्ञान के स्थान पर सम्यक् ज्ञान का और मिथ्या चारित्र के स्थान पर सम्यक् चारित्र का पूर्णतया एवं सर्वतो भावेन विकास हो जाना ही मोक्ष एवं मुक्ति है।
__ अब प्रश्न यह उठता है कि जिस मुक्ति की चर्चा भारत का अध्यात्मवादी दर्शन जन्मघुट्टी से लेकर मृत्युपर्यन्त करता रहता है, जीवन के किसी भी क्षण में वह उसे विस्मृत नहीं कर सकता। आखिर उस मुक्ति का उपाय और साधन क्या है ? क्योंकि साधक बिना साधन के सिद्धि को प्राप्त कैसे कर सकता है ? भारत के अध्यात्मवादी दर्शन में केवल मुक्ति के लक्ष्य को स्थिर ही नहीं किया गया, और केवल यही नहीं कहा गया कि मुक्ति एक लक्ष्य है और वह एक आदर्श है, बल्कि, उस लक्ष्य तक पहुँचने और उसे प्राप्त करने का मार्ग और उपाय भी बताया गया है। मुक्ति के आदर्श को बताकर साधक से यह कभी नहीं कहा गया कि वह केवल तुम्हारे जीवन का आदर्श है, पर तुम कभी उसे प्राप्त नहीं कर सकते। क्योंकि उसकी प्राप्ति का कोई अमोघ साधन नहीं है। इसके विपरीत उसे सतत एक ही प्रेरणा दी गई, कि मुक्ति का आदर्श अपने में बहुत ऊँचा है, किन्तु वह अलभ्य नहीं है। तुम उसे अपनी साधना के द्वारा एक दिन अवश्य प्राप्त कर सकते हो। जिस आदर्श साध्य की सिद्धि का साधन न हो, वह साध्य ही कैसा !
१. विभिन्न परम्पराओं में रत्नत्रय ___ जैन - दर्शन ने स्पष्ट शब्दों में यह उद्घोषणा की है, कि प्रत्येक साधक के अपने ही हाथों में मुक्ति को अधिगत करने का उपाय एवं साधन है। और वह साधन क्या है; सम्यक् दर्शन; सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र । इन तीनों का समुचित रूप ही मुक्ति का वास्तविक उपाय एवं साधन है। तत्वार्थसूत्र' के प्रारंभ में ही कहा है सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र मोक्ष का मार्ग है। उत्तराध्ययनसूत्र' मे सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन, सम्यक् चारित्र और सम्यक् तप ऐसे चतुर्विध
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