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समत्वयोग का आधार-शान्त रस तथा भावनाएँ
१०३ लक्षण बताया गया है -
'परदुःखप्रहाणेच्छा करुणा' . दूसरों के दुःखों का निवारण करने की भावना उत्पन्न होना करुणा है। वास्तव में करुणा मानव-अन्तःकरण की गहन, मौन और अव्यक्त कोमलता का नाम है। इसमें स्वार्थ और संकीर्णता का कहीं भी भाव नहीं होता ।
महामना मदनमोहन मालवीय किसी अत्यन्त आवश्यक कार्य से जा रहे थे । सड़क के किनारे उन्हें एक बीमार बुढ़िया कराहती हुई पड़ी नजर आई । उन्होंने अपनी गाड़ी रुकवाई और बुढ़िया को अपनी गाड़ी में बिठाकर अस्पताल पहुंचाया । साथी वकील ने पूछा - "ऐसे मामूली काम के लिए आपको अपना बहुमूल्य समय क्यों नष्ट करना चाहिए था ?"
मालवीयजी ने गम्भीरतापूर्वक कहा .. "पीड़ितों की सहायता से बढ़कर और कौन-सा महत्त्वपूर्ण और आवश्यक कार्य हो सकता है ?"
जैसे कि पाश्चात्य विद्वान बायरन (Byron)ने लिखा है -
"The drying up a single tear has more of honest fame than shedding seas of gore.”
"रक्त के समुद्र गिराने के बजाय पीड़ित का एक आँसू पोंछ कर सुखाना बढ़कर प्रामाणिक यश है।"
एक ऐतिहासिक उदाहरण से मैं अपनी बात स्पष्ट कर देती हूँ -
बात उस जमाने की है, जब यूरोप में दास-दासी प्रथा प्रचलित थी। अफ्रीकी देशों से दास-दासियों के रूप में छोटे-छोटे बालक-बालिकाएँ खरीदे जाते और यूरोप में ले जाकर बेच दिये जाते थे। इस व्यापार में जहाँ निर्दय व्यवसायियों को करोड़ों रूपयों का मुनाफा होता, वहाँ खरीदे हुए दासों की उतनी ही भयंकर दुर्गति होती । केवल जीवित रखने भर के लिए उन्हें अन्न और फटेपुराने कपड़े दिये जाते, बदले में उनसे अधिकाधिक काम लिया जाता तथा तरहतरह से यातनाएँ भी दी जाती थीं ।
इन दुःखित- पीड़ितों की यह दशा देखकर जोन ह्विटले नामक अमेरिकी महिला का दिल करुणा से भर आया। उसने दयार्द्र होकर इस अमानवीय कृत्य
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