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.से चली आती है, उसका नियंत्रण या सर्जन प्राणियों के कर्म से होता है, किसी अन्य कारण से नहीं । विश्व के मूल में कोई एक ही तत्त्व होना जरूरी है - इस विषय में वैदिक निष्ठा देखी जाय तो विविध प्रकार की है । अर्थात् वह एक तत्त्व क्या है, इस विषय में नाना मत हैं किन्तु ये सभी मत इस बात में तो एकमत हैं कि विश्व के मूल में कोई एक ही तत्त्व था । इस विषय में जैनों का स्पष्ट मन्तव्य है कि विश्व के मूल में कोई एक तत्त्व नहीं किन्तु वह तो नाना तत्त्वों का संमेलन है ।
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वेद के बाद ब्राह्मणकाल में तो देवों को गौणता प्राप्त हो गई और यज्ञ ही मुख्य बन गये । पुरोहितों ने यज्ञक्रिया का इतना महत्त्व बढ़ाया कि यज्ञ यदि उचित ढंग से हों तो देवता के लिए ग्रनिवार्य हो गया कि वे अपनी इच्छा न होते हुए भी यज्ञ के पराधीन हो गये । एक प्रकार से यह देवों पर मानवों को विजय थी किन्तु इसमें भी दोष यह था कि मानव का एक वर्ग — ब्राह्मणवर्ग ही यज्ञ-विधि को अपने एकाधिपत्य में रखने लग गया था । उस वर्ग की अनिवार्यता इतनी बढ़ा दी गई थी कि उनके बिना और उनके द्वारा किए गये वैदिक मन्त्रपाठ और विधिविधान के बिना यज्ञ की संपूति हो ही नहीं सकती थी। किन्तु जैनधर्म में इसके विपरीत देखा जाता है । जो भी त्याग-तपस्या का मार्ग अपनावे चाहे वह शूद्र ही क्यों न हो, गुरुपद को प्राप्त कर सकता था और मानवमात्र का सच्चा मार्गदर्शक भी बनता था । शूद्र वेदपाठ कर ही नहीं सकता था किन्तु जैनशास्त्रपाठ में उनके लिए कोई बाधा नहीं थी । धर्ममार्ग में स्त्री और पुरुष का समान अधिकार था, दोनों ही साधना करके मोक्ष पा सकते थे ।
वेदाध्ययन में शब्द का महत्त्व था अतएव वेदमन्त्रों के संस्कृत भाषा को पवित्र माना गया, उसे महत्त्व मिल। । का नहीं, पदार्थ का महत्त्व था । अतएव उनके यहां धर्म के सुरक्षा हुई किन्तु शब्दों की सुरक्षा नहीं हुई । परिणाम स्पष्ट था कि वे संस्कृत को नहीं, किन्तु लोकभाषा प्राकृत को ही महत्त्व दे सकते थे । प्रकृति के अनुसार सदैव एकरूप रह ही नहीं सकती थी, जब कि वैदिक संस्कृत उसी रूप में प्राज वेदों में उपलब्ध है । के काल में वैदिकधर्म में ब्राह्मणों का प्रभुत्व स्पष्टरूप से विदित होता है, जब कि जबसे जैनधर्म का इतिहास ज्ञात है तबसे उसमें ब्राह्मण नहीं किन्तु क्षत्रियवगं ही नेता माना गया है । उपनिषद् काल में वैदिकधर्मं में ब्राह्मणों के समक्ष
प्राकृत अपनी
वह बदलती हो गई उपनिषदों के पहले
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पाठ की सुरक्षा हुई,
किन्तु जैनों में पद मौलिक सिद्धांत की
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