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( २६ ) या भिन्न, यह कहना कठिन है किन्तु इतना तो कहा ही जा सकता है कि अजित नामक व्यक्ति ने प्राचीनकाल में प्रतिष्ठा पाई थी।
__ बौद्धपिटक में निग्गन्थ नातपुत्त का कई बार नाम आता है और उनके उपदेश की कई बातें ऐसी हैं जिससे निग्गन्थ नातपुत्त की ज्ञातपुत्र भगवान् महावीर से अभिन्नता सिद्ध होती है। इस विषय में सर्वप्रथम डा० जेकोबी ने विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया था और अब तो यह बात सर्वमान्य हो गई है। डॉ. जेकोबी ने बौद्धपिटक से ही भ० पाश्वनाथ के अस्तित्व को भी साबित किया है। भ० महावीर के उपदेशों में बौद्धपिटकों में बारबार उल्लेख आता है कि उन्होंने चतुर्याम का उपदेश दिया है। डॉ. जेकोबी ने इस परसे अनुमान लगाया है कि बुद्ध के समय में चतुर्याम का पाश्र्वनाथ द्वारा दिया गया उपदेश जैसा कि स्वयं जैनधर्म की परंपरा में माना गया है, प्रचलित था। भ० महावीर ने उस चतुर्याम के स्थान में पांच महाव्रत का उपदेश दिया था। इस बात को बुद्ध जानते न थे। अतएव जो पाश्वका उपदेश था उसे महावीर का उपदेश कहा गया। बौद्धपिटक के इस गलत उल्लेख से जैन परंपरा को मान्य पार्श्व और उनके उपदेश का अस्तित्व सिद्ध हो जाता है। इस प्रकार बौद्धपिटक से हम पार्श्वनाथ के अस्तित्व के विषय में प्रबल प्रमाण पाते हैं। ___ सोरेन्सन ने महाभारत के विशेषनामों का कोष बनाया है। उसके देखने से पता चलता है कि सुपाश्वं, चन्द्र और सुमति ये तीन नाम ऐसे हैं जो तीथंकरों के नामों से साम्य रखते हैं । विशेष बात यह भी ध्यान देने की है कि ये तीनों ही असुर हैं। और यह भी हम जानते हैं कि पौराणिक मान्यता के अनुसार अर्हतों ने जो जैनधर्म का उपदेश दिया है वह विशेषतः असुरों के लिए था। अर्थात् वैदिक पौराणिक मान्यता के अनुसार जैनधर्म असुरों का धर्म है। ईश्वर के अवतारों में जिस प्रकार ऋषभ को अवतार माना गया है उसी प्रकार सुपाश्वं को महाभारत में कुपथ नामक असुर का अंशावतार माना गया है। चन्द्र को भी मंशावतार माना गया है। सुमति नामक असुर के लिए कहा गया है कि वरुणप्रासाद में उनका स्थान दैत्यों और दानवों में था। तथा एक अन्य सुमति नाम के ऋषि का भी महाभारत में उल्लेख है जो भीष्म के समकालीन बताए गए हैं।
जिस प्रकार भागवत में ऋषभ को विष्णु का अवतार माना गया है उसी प्रकार अवतार के रूप में तो नहीं किन्तु विष्णु और शिव के जो सहस्रनाम महाभारत में दिये गये हैं उनमें श्रेयस, अनन्त, धर्म, शान्ति और संभव-ये नाम विष्णु के भी हैं और ऐसे ही नाम जैन तीर्थंकरों के भी मिलते हैं। सहस्रनामों
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