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( २५ ) के ऊपर भार दिया गया है और अप्रमादी बनने को कहा गया है। उसमें भी कहा है
कुसग्गे जह ओसबिन्दुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए।
एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए। अरक के समय के विषय में भ० बुद्ध ने कहा है कि अरक तीर्थंकर के समय में मनुष्यों की आयु ६० हजार वर्ष की होती थी, ५०० वर्ष की कुमारिका पति के योग्य मानी जाती थी। उस समय के मनुष्यों को केवल छः प्रकार की पीड़ा होती थी—शीत, उष्ण, भूख, तृषा, पेशाब करना और मलोत्सर्ग करना। इनके अलावा कोई रोगादि की पीड़ा न होती थी। इतनी बड़ी आयु और इतनी कम पीड़ा फिर भी अरक का उपदेश जीवन की नश्वरता का और जीवन में बहृदुःख का था।
भगवान बुद्ध द्वारा वर्णित इस अरक तीर्थंकर की बात का अठारहवें जैन तीर्थकर अर के साथ कुछ मेल बैठ सकता है या नहीं, यह विचारणीय है। जैनशास्त्रों के आधार से अर की आयु ८४००० वर्ष मानी गई है और उनके बाद होनेवाली मल्ली तीर्थंकर की आयु ५५ हजार वर्ष है। अतएव पौराणिक दृष्टि से विचार किया जाय तो अरक का समय अर और मल्ली के बीच ठहरता है। इस आयु के भेद को न माना जाय तो इतना कहा ही जा सकता है कि अर या अरक नामक कोई महान् व्यक्ति प्राचीन पुराणकाल में हुअा था जिन्हें बौद्ध और जैन दोनों ने तीर्थंकर का पद दिया है। दूसरी बात यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस परक से भी पहले बुद्ध के मत से अरनेमि नामक एक तीर्थंकर हुए हैं। बुद्ध के बताये गये अरनेमि और जैन तीर्थंकर अर का भी कुछ संबंध हो सकता है। नामसाम्य आंशिक रूप से है हो और दोनों की पौराणिकता भी मान्य है। बौद्ध थेरगाथा में एक अजित थेर के नाम से गाथा है
"मरणे मे भयं नस्थि निकन्ति नत्थि जीविते। सन्देहं निक्खिपिस्सामि सम्पजानो पटिस्सतो ॥"
-थेरगाथा १.२० उसकी अट्ठकथा में कहा गया है कि ये अजित ६१ कल्प के पहले प्रत्येकबुद्ध हो गये हैं। जैनों के दूसरे तीथंकर अजित और ये प्रत्येकबुद्ध अजित योग्यता और नाम के अलावा पौराणिकता में भी साम्य रखते हैं। महाभारत में अजित और शिव का ऐक्य वर्णित है। बौद्धों के, महाभारत के और जैनों के अजित एक हैं
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