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________________ समाधि आदि का आवरण अनुभाव है। हर्ष, धृति, प्रसन्नता आदि व्यभिचारी भाव हैं। इस प्रकार यहां शांतरस की पुष्टि हो रही है। आचारांग में शांतरस का सुन्दर प्रयोग मिलता है। भगवान महावीर सांसारिक निर्वेद से अभिभूत होकर संयम-यात्रा में प्रस्थान करते हैं अहासुयं वदिस्सामि जहा से समणे भगवं उट्ठाय। संखाय तंसि हेमंते अहुणा पव्वइए रीयत्था।। णो चेविमेण वत्थेण पिहिस्सामि तंसि हेमंते । से पारए आवकहाए एयं खु अणुधम्मियं तस्स।। चत्तारि साहिए मासे बहवे पाण जाइया आगम्म। अभिरुज्झ कायं विहरिस् आरुसियाणं तत्थ हिंसिंसु।। भगवान ने संकल्प किया- मैं हेमन्त में इस वस्त्र से शरीर को आच्छादित नहीं करूंगा। वे जीवन पर्यन्त कष्ट सहन करने का संकल्प कर चुके थे। यह उनकी धर्मानुगामिता थी। अभिनिष्क्रमण के समय लगाए गए सुन्दर सुगंधित लेप से आकर्षित होकर भ्रमर आदि प्राणी शरीर पर आकर रस चूसते और डंक मारते थे। यह क्रम चार मास से कुछ अधिक समय तक चलता रहा। यहां पर नित्यानित्य वस्तु-विवेक से समुत्थ सांसारिक अनासक्ति रूप निर्वेद स्थायी भाव है, जो संसार की दुःखरूपता एवं विनश्वरता आदि आलम्बन विभावों से उत्पन्न दीक्षा आदि उद्दीपन से उद्दीप्त, विहार, संयम, ध्यानादि अनुभावों से कार्यरूप में परिणत तथा धृति, क्षमा आदि व्यभिचारिकों की सहायता से शांतरस के रूप में अभिव्यक्त हो रहा है। ज्ञाताधर्मकथा सूत्र में अनेक स्थलों पर शांतरस का सुन्दर वातावरण समुत्थित है। अन्य रस- शांत रस के अतिरिक्त शृंगार, वीर रसादिकों का भी पर्याप्त मात्रा में प्रयोग हुआ है। "शृंगाररस" का विनियोजन अनेक स्थलों पर हुआ है। सिंगार शब्द भी अनेक बार प्रयुक्त है- सिंगारागारचारुवेसा। अनुयोगद्वार में सिंगार के लक्षण एवं उदाहरण दोनों मिलते हैं। सिंगारो नाम रसो रतिसंजोगामिलाससंजणणा। मंडणविलास विम्बोय-हासलीलारमणलिंगो।। अर्थात् रति और संयोग की अभिलाषा से शृंगार रस उत्पन्न होता है। विभूषा, विलास, विब्बोक, हास्य, लीला और रमण उसके चिह्न होते हैं। . उदाहरण- सिंगारो रसो जहामहुरं विलासललियं हिययुम्मादणकरं जुवाणाणं। - स्वाध्याय शिक्षा - 60 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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