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________________ कहने का तात्पर्य यह है कि हम दुनियां की सभी सूचनाएँ प्राप्त करें। विज्ञान व भौतिक जगत् का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करें, सारी उपलब्धियाँ प्राप्त करें, लेकिन इन सबके साथ धर्म के जीवन मूल्यों की उपेक्षा नहीं करें, उस स्थिति में विज्ञान भी विनाशक शक्ति न होकर मानवजाति के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा। तीन प्रकार के आचार्य ___ राजप्रश्नीय सूत्र में तीन प्रकार के आचार्यों का उल्लेख मिलता हैकलाचार्य, शिल्पाचार्य और धर्माचार्य। कलाचार्य जीवनोपयोगी ललित कलाओं, विज्ञान व सामाजिक ज्ञान जैसे विषयों की शिक्षा देता था। भाषा और लिपि, गणित, भूगोल, खगोल, ज्योतिष, आयुर्वेद, संगीत और नृत्य इन सबकी शिक्षाएँ कलाचार्य प्रदान करते थे। जैनागमों में पुरुषों की ६४ और स्त्री की ७२ कलाओं का विवरण मिलता है। दूसरी प्रकार की शिक्षा शिल्पाचार्य देते थे जो आजीविका या धन के अर्जन से संबंधित थी। शिल्प, उद्योग व व्यापार से संबंधित सारे का की शिक्षा देना शिल्पाचार्य का कार्य था। इन दोनों के अतिरिक्त तीसरा शिक्षक धर्माचार्य था, जिसका कार्य धर्म की शिक्षा प्रदान करना व चरित्र का विकास करना था। धर्माचार्य शील और सदाचरण का ज्ञान प्रदान करते थे। इन सब प्रकार की शिक्षाओं को प्राप्त करने के कारण ही हमारा श्रावक समाज बहत सम्पन्न था। सामान्य व्यक्ति उनको सेठ और साहूकार जैसे आदरसूचक संबोधन से पुकारता था। भगवान महावीर ने कहा है- "जे कम्मे सूरा ते धम्मे सूरा" अर्थात् जो कर्म में शूर होता है, वही धर्म में शूर होता है। चरित्र को उन्नत बनाएँ ___आज सूचना तकनीकी का द्रुतगामी विकास हुआ है। रेडियो, टी.वी., कम्प्यूटर, इंटरनेट आदि द्वारा विश्व का सम्पूर्ण ज्ञान सहजता से उपलब्ध हो रहा है, लेकिन अगर बालक के चरित्र निर्माण पर ध्यान नहीं दिया गया तो ये वैज्ञानिक साधन उसे पतित कर सकते हैं। आज विश्व के सर्वाधिक समृद्ध राष्ट्र अमेरिका का एक विद्यार्थी १८ वर्ष की उम्र तक कम से कम १२००० हत्याएँ, बलात्कार आदि के दृश्य टी.वी. पर देख लेता है। उसी विद्यार्थी के कोमल मस्तिष्क पर इसका कितना भयंकर प्रभाव पड़ता है? आज यही तकनीकी हमारे देश में भी सुलभ हो गई है। अनेक प्रकार के चैनल व चलचित्र टी.वी. पर प्रदर्शित होते हैं जो २४ घंटे चलते रहते हैं। उनमें से अनेक हिंसा एवं अश्लीलता को बढ़ावा देने वाले, हमारे पारिवारिक जीवन को विखण्डित करने वाले होते हैं। हमारी सरकार भी अधिक स्वाध्याय शिक्षा - - 41 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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