SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागमों का सर्वमान्य रूप आवश्यक श्री जशकरण डागा यह आवश्यकता सदैव अनुभव की जाती है कि श्वेताम्बर एवं दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों को मान्य एक ऐसा जैनागम हो, जिसे कुरान, बाइबल, अवेस्ता आदि के समान मान्यता हो। वरिष्ठ स्वाध्यायी श्री डागा जी ने अपना आलेख इसी बिन्दु को केन्द्र में रखकर लिखा है। इस संबंध में मेरा निवेदन है कि 'तत्त्वार्थसूत्र' दोनों परम्पराओं को मान्य है। उसे आगमवत् मान्यता दी जा सकती है। इस पर टीकाएँ भी बहुत हुई हैं। आधुनिक रचनाओं या संकलनों को वैसी मान्यता मिलना कठिन कार्य है। 'समणसुत्त' एवं 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' के संबंध में ऐसा अनुभव हो चुका है। समन्वय/एकता के प्रोत्साहन हेतु लेख प्रकाशित है। -सम्पादक जैन धर्म, दर्शन और संस्कृति के मूलाधार जैनागम हैं। सर्वज्ञ (सम्पूर्ण आत्म द्रष्टा) वीतराग भगवंतों द्वारा प्ररूपित जिनवाणी, सूत्र या आगम कही जाती है। तीर्थकर भगवंतों द्वारा सर्व जीवों के कल्याणार्थ, अलौकिक तत्त्वमयी दी गई दिव्य देशना मुक्त सुमनों के समान अर्थ रूप होती है। महान् प्रज्ञावान गणधर उसका अनंतवाँ भाग ही सूत्र रूप में गुम्फित कर पाते हैं। कहा है 'अत्थ भासइ अरहा, सुत्न गति गपहरा निउण।' ये ग्रथित सूत्र ही जिनागम हैं। ये जिनागम ही प्राचीन काल में गणिपिटक कहलाते थे। गणिपिटक में समग्र द्वादशांगी समाहित होती है। पश्चाद्वर्ती काल में इसके अंग, उपांग, मूल, छेद आदि अनेक भेद किए गए। इनमें ज्ञान-विज्ञान का, न्याय-नीति का, आचार-विचार का, धर्म-दर्शन का, अध्यात्म-अनुभव का, आत्मा-परमात्मा का, साध्य-साधना का, गति-आगति आदि की जानकारी का अनुपम व अक्षय कोष है। वैदिक धर्म में जो स्थान वेदों का, बौद्धों में त्रिपिटक का, पारसी धर्म में अवेस्ता का, ईसाई धर्म में बाइबिल का व इस्लाम धर्म में कुरान का है, वही स्थान जैन धर्म में आगम- साहित्य का है। जहां वेद अनेक ऋषि-महर्षियों के निर्मल विचारों का संकलन है, वहाँ उपलब्ध जैनागम सर्वज्ञ सर्वदर्शी भ. महावीर की दिव्य देशना, जिसमें विशुद्ध मोक्ष मार्ग का निरूपण है, का ऐसा अनुपम संग्रह है कि वैसा अध्यात्म तत्त्वज्ञान किसी भी अन्य धर्म या दर्शन के ग्रंथों में नहीं मिलता है। वस्तुतः जो अज्ञान, राग, द्वेष आदि का क्षय कर जिन, तीर्थकर, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी हुए हैं, उन आप्त महापुरुषों के तत्त्वचिन्तन एवं देशनामयी दिव्य वाणी का संकलन ही आगम है। आगम व्याख्या साहित्य- यह अभी पाँच प्रकार से उपलब्ध होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002542
Book TitleSwadhyaya Shiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2003
Total Pages174
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy