________________
१. विनीत शिष्य आसन पर अथवा शय्या पर बैठा हुआ ही गुरु से प्रश्न पूछने की अपेक्षा उनके समीप जाकर उत्कटुकासन करता हुआ हाथ जोड़कर सविनय अपनी शंका को गुरु के समक्ष रखता है । - उत्तराध्ययन सूत्र 1.22 २. विनीत शिष्य गुरु की दृष्टि के अनुसार चलता है, उनकी निस्संगता का अनुगमन करता है, उन्हें हर बात में आगे रखकर उनमें श्रद्धा रखता है।
आचारांग सूत्र 5.4
३. वनीत शिष्य लज्जाशील और इन्द्रिय विजेता होता है । - उत्तराध्ययन सूत्र 5.4 ४. विनीत शिष्य गुरु के द्वारा एक बार या बार-बार बुलाने पर कभी भी बैठा नहीं रहता, अपितु आसन छोड़कर यत्नपूर्वक उनके आदेश को स्वीकार करता है।
५. विनीत शिष्य आचार्यों द्वारा बुलाए जाने पर किसी
रहता। -- उत्तराध्ययन सूत्र 1.20
६. विनीत शिष्य अनन्तर ज्ञान सम्पन्न होने पर भी गुरु की विनयपूर्वक सेवा के लिए उसी प्रकार सदा तत्पर रहता है जिस प्रकार अग्निहोत्री ब्राह्मण मधु, घृत आदि विविध पदार्थों की आहुति तथा मन्त्र पदों से अभिषिक्त अग्नि को नमस्कार करता है । - दशवैकालिक सूत्र 9.1.11
- उत्तराध्ययन सूत्र 1.21 भी अवस्था में मौन नहीं
७. विनीत शिष्य गुरु की आशातना नहीं करता है। - दशवैकालिक सूत्र 9.3.2 ८. गुरु कोमल अथवा कठोर शब्दों में जो शिक्षा देते हैं, उसमें मेरा हित समाहित है, मुझे ही लाभ है, ऐसा विचार कर विनीत शिष्य अत्यन्त सावधानीपूर्वक गुरु से शिक्षा ग्रहण करता है । - उत्तराध्ययन सूत्र 1.27
६. विनीत शिष्य कभी भी किसी व्यक्ति का निरादर नहीं करता और न आत्म प्रशंसा ही करता है, वह शास्त्र ज्ञान प्राप्त करके भी अभिमान नहीं करता। वह जाति, तप अथवा बुद्धि का भी अहंकार नहीं करता है।
- दशवैकालिक सूत्र 8.30 १०. विनीत शिष्य गुरु के वचन की बार-बार अपेक्षा नहीं रखता है।
- उत्तराध्ययन सूत्र 1.12
११. विनीत शिष्य गुरु के इंगित और आकार को देखकर अशुभ प्रवृत्ति को इस प्रकार छोड़ देता है जिस प्रकार विनीत अश्व चाबुक को देखते ही उन्मार्ग को छोड़ देता है । - उत्तराध्ययन सूत्र 1.12
१२. विनीत शिष्य, जिस स्थान पर क्लेष - संघर्ष की संभावना रहती है, उस स्थान से
सदा दूर रहता है : - उत्तराध्ययन सूत्र5.1.16
स्वाध्याय शिक्षा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
105
www.jainelibrary.org