________________
प्राप्त किया जाता है, पूरित किया जाता है वह कारण उस कार्य का पूर्व कहलाता है। श्रुतज्ञान मतिज्ञान के द्वारा प्राप्त किया जाता है तथा मतिज्ञान की स्पष्टता के अभाव में श्रुतज्ञान का उत्तरोत्तर विकास दृष्टिगोचर नहीं होता। जिसके उत्कर्ष-अपकर्ष पर जिसका उत्कर्ष-अपकर्ष आश्रित हो वह उसका कारण कहलाता है तथा कार्य तत्पूर्वक होता है। जिस प्रकार घट मृत्तिकापूर्वक होता है, अतः उसकी उत्कृष्टता-अपकृष्टता मृत्तिका की उत्कृष्टता-अपकृष्टता पर निर्भर करती है। उसी प्रकार श्रुतज्ञान की उत्कृष्टता-अपकृष्टता के मतिज्ञान की उत्कृष्टता-अपकृष्टता पर आश्रित होने के कारण श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है।" श्रुतनिश्रित मतिज्ञान और अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान
_मनरहित जीवों में श्रुतज्ञान ही मतिज्ञान पर आश्रित होता है, जबकि समनस्क प्राणियों, विशेष रूप से मनुष्यों में मतिज्ञान भी श्रुतज्ञान पर आश्रित होता है। तत्त्वार्थ सूत्र में श्रुतज्ञान को मतिपूर्वक कहा गया है।" इसे स्वीकार करने के साथ ही साथ नन्दीसूत्र," विशेषावश्यक भाष्य" आदि में मतिज्ञान के श्रुतनिश्रित तथा अश्रुतनिश्रित ये दो भेद किये गये हैं। श्रुतनिश्रित का अर्थ स्पष्ट करते हुए अभयदेव कहते हैं कि जो श्रुत के द्वारा निष्पन्न हो, श्रुत पर आश्रित हो वह श्रुतनिश्रित है। जो अवग्रहादि श्रुतज्ञान पूर्वक ही अथवा उसकी सहायता से ही अथवा उसकी अपेक्षा पूर्वक ही विषय को जानते हैं वे श्रुतनिश्रित मतिज्ञान हैं। श्रोत्रादि इन्द्रियों से उत्पन्न अथवा औत्पत्तिकी आदि बुद्धिरूप से उत्पन्न जो मतिज्ञान पूर्णरूपेण क्षयोपशमजन्य होते हैं तथा जिनमें श्रुतज्ञान का कोई योगदान नहीं होता, वे अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान है। पूर्ववर्ती मतिज्ञान श्रुतज्ञान द्वारा परिकर्मित है तथा परवर्ती मतिज्ञान श्रुतातीत
संज्ञी पंचेन्द्रिय, विशेषकर मानवीय संदर्भ में मतिज्ञान और श्रुतज्ञान परस्पर कारण-कार्य रूप से संबंधित हैं। श्रुतज्ञान की उत्पत्ति मतिज्ञान पूर्वक तथा मतिज्ञान का विकास श्रुतज्ञान पूर्वक होता है। किसी व्यक्ति के कथनों का आशय हम हमारे अनुभवों का अवलम्बन लेकर ही समझ सकते हैं तथा शब्दप्रमाण के द्वारा हम वस्तु के नये पक्षों को पहचानना सीखते हैं। मतिश्रुतज्ञान की इस परस्पराश्रितता के सिद्धान्त में अन्योन्याश्रय दोष नहीं है, अपितु ये बीजांकुर न्याय से एक-दूसरे को विकसित करते हैं।
मतिज्ञान प्राथमिक होता है तथा उसी के धरातल पर श्रुतज्ञान की उत्पत्ति होती है। यह प्रारम्भिक स्तर पर अश्रुतनिश्रित ही होता है। यह बहुत छोटा बच्चा स्वाध्याय शिक्षा
-
97
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org