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करुण पुकार किसी राजनेता के दिल तक नहीं पहुँचती । न राष्ट्रपति, न प्रधानमंत्री, न लोकसभा, न विधानसभा, न यह पक्ष, न वह पक्ष, कोई नहीं सुन रहा इन पशुओं की पत्थर तक को पिघलाने वाली करुण पुकार को। अगर किसी अर्थाभाव से ग्रसित को यह कह दिया जाय कि पांच लाख देकर अपनी आंख दे दे, तो दुनिया का एक भी व्यक्ति आगे नहीं आयेगा । फिर क्यों विश्व के ६० प्रतिशत लोग इन प्राणियों का भक्षण कर रहे हैं। आँख, नाक और मुँह ही नहीं पूरे प्राणी को नष्ट किये जा रहे हैं। जबकि प्रकृति ने हजारों पदार्थ पेट भरने के लिए दिये हैं। बिना आवश्यकता के धरती माता के इन सपूतों का प्राण हरण किसी दिन कोई अनपेक्षित उपद्रव का सर्जन कर दे तो आश्चर्य की बात नहीं। हमारी आवाज के एक-एक बोल पूरे विश्व में परिभ्रमण करते हैं, तो क्या इन मूक प्राणियों की चीत्कार, करुण क्रंदन पूरे ब्रह्माण्ड को प्रभावित नहीं करेगा?
प्रकृति समय-समय पर हमारे इस दुष्कृत्य का बदला लेती है। कच्छ का भूकम्प हो या लातूर उस्मानाबाद का धरती कंप, आन्ध्र का तूफान हो या बाढ़ पीड़ित प्रदेश हो, प्रकृति अपने सपूतों के रक्तपात का हिसाब रखती है। जिस तरह पानी व हवा जैसी जीवन में आवश्यक वस्तुएं हमें प्रकृति से प्राप्त हुई है उसी तरह जानवर मनुष्य के सदुपयोग व पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रकृति से प्राप्त हुए हैं। मनुष्य ने अपनी बुद्धि का विपरीत प्रयोग कर विनाश का सृजन किया। घास फूस खाकर अमृत तुल्य दूध देने वाले इन निष्पाप जीवों को मौत के घाट उतारना शुरू किया। जैन शास्त्रों में इन प्राणियों की हत्या को अपराध या पाप बताया गया है। जगह-जगह जैन आगमों में इसका वर्णन देखने को मिलता है। पंचेन्द्रिय जीवों की घात करने वाले को नरकगामी बताया गया है।
बहुत दुःख है इस बात का कि, सदियों से यह पापकृत्य चला आ रहा है। अपराधी को दण्ड देने की प्रथा तो शुरू से चली आयी है । परन्तु निरपराधों को फांसी देकर, भूनकर पापी पेट की पूर्ति करने की यह क्रूरप्रथा बन्द करने के लिये भागीरथ प्रयासों की आवश्यकता है। क्योंकि यह उचित नहीं कि हम अपना पेट भरने के लिए किसी का पेट काट दें। अमृत तुल्य दूध पिलाने वाले इन परोपकारी प्राणियों को मौत के घाट उतार दें। विश्व के इतिहास की यह सबसे बड़ी दुर्घटना है। इसका सभी अहिंसा-प्रेमियों को डटकर प्रचार-प्रसार विज्ञान का सहारा लेकर करना चाहिए । यांत्रिक कत्लखाने, मांसाहार का प्रचार-प्रसार तथा हिंसा के खौफनाक तरीके जिस द्रुत गति से बढ़ रहे हैं उन्हें ब्रेक लगाने के लिए सभी जाति-धर्म के लोगों को, जो
स्वाध्याय शिक्षा
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