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________________ बने रहे, साध्य नहीं बने। चित्रकाव्य तथा कुछ अन्य चमत्कारपूर्ण शैलियों के रूप में उन पर उस युग का जो प्रभाव दृष्टिगत होता है वह नगण्य है। श्रृंगार रस की जो सरिता उस युग में प्रवाहित हो रही थी और अधिकांश कवि जिसमें आकंठ-मग्न हो रहे थे वह उनका स्पर्श भी न पा सकी अतः वे रीतिकाल में रहते हुए भी रीतिमुक्त कवि थे। किन्तु केवल रीतिमुक्त कवि कहने से उनकी प्रमुख विशेषताएं अप्रकाशित ही रह जाती हैं। रीति मुक्त कवि तो घनानंद भी थे, ठाकुर भी थे, बोधा भी थे किन्तु क्या भैया भगवतीदास को भी उसी कोटि में रखा जा सकता है? ऐसा करने पर उनके प्रति पूर्ण न्याय नहीं हो सकता। वस्तुतः आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने वाले नवीन लेखक 'रीतिकाल के भक्त एवं संत कवियों का एक पृथक वर्ग बनायें जिनमें 'ब्रह्म में विलास कराने वाले काव्य' के रचयिताओं को स्थान दिया जाये, तभी भैया भगवतीदास जैसे आध्यात्मिक कवियों को हिन्दी साहित्य में उचित स्थान तथा सम्मान प्राप्त हो सकेगा। सभी तथ्यों को दृष्टि में रखते हुए हम नि:संकोच कह सकते हैं कि भैया भगतवीदास रीतिकालीन रीतिमुक्त कवि ही नहीं अपितु एक आध्यात्मिक संत एवं भक्त कवि थे, जिनके काव्य में ज्ञान और भक्ति की धारा साथ-साथ प्रवाहित हो रही है। साथ ही वे एक उच्च कोटि के कवि भी थे। अतः हिन्दी साहित्य की भूमि को शान्त-रस की काव्य-धारा से सिंचित करने में भैया भगवतीदास का महत्वपूर्ण स्थान है। संदर्भ एवं टिप्पणियाँ लक्ष्मीचन्द्र जैन, अध्यात्म-पदावली (सं0 डॉ0 राजकुमार जैन) के आमुख पृ0 सं0 11 से उद्धृत। भैया भगवतीदास, परमात्म छत्तीसी, छं0सं0 12 भैया भगवतीदास, ईश्वर निर्णय पचीसिका, छं0सं0 23 भैया भगवतीदास, परमात्म छत्तीसी, छं0सं0 9 भैया भगवतीदास, परमात्म छत्तीसी, छं0सं0 18 . भैया भगवतीदास, जिनधर्मपचीसिका, छं0सं0 26 (209) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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