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"सबै वस्तु असहाय जहां तहां निमित्त है कौन। ज्यों जहाज परवाह में तिरै सहज बिन पौन।।' 64
प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री कानजी स्वामी (सोनगढ़ निवासी) इसी विचारधारा के प्रबल समर्थक हैं। उनके विचार से "उपादान निमित्त की स्वतंत्रता का निर्णय किए बिना कदापि सम्यग्दर्शन प्रगट नहीं होता। .... निमित्त में कोई विशेषता है, कभी कभी निमित्त का असर होता है, कभी कभी निमित्त की मुख्यता से कार्य होता है, इस प्रकार की तमाम मान्यताएं अज्ञानभूलक हैं। 65
इस प्रकार इस क्षेत्र में विभिन्न विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत हैं। भैया भगवतीदास ने भी निमित्त की महत्ता को बिल्कुल अस्वीकार कर दिया है। उनके विचार से जीव अपने, केवल अपने पुरुषार्थ से ही परम पद की प्राप्ति कर सकता है।
संदर्भ एवं टिप्पणियाँ
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भैया भगवतीदास, अनादि बत्तीसिका, छं0 सं0 28 भैया भगवतीदास, अनादि बत्तीसिका, छं0 सं0 9 पं0 जुगलकिशोर मुख्तार, सिद्धिसोपान, पद्य 4 भैया भगवतीदास, दव्य संग्रह, मूल सहित कवित्त बंध, छं0 2 भैया भगवतीदास, शत अष्ठोत्तरी, छं0 सं0 85 भैया भगवतीदास, दव्य संग्रह कवित्त बंध, छं0 सं0 7 भैया भगवतीदास, शत अष्टोत्तरी, छं0 सं0 9
भैया भगवतीदास, शत अष्टोत्तरी, छं0 सं0 24 9. भैया भगवतीदास, द्रव्य संग्रह कवित्त बंध, छं0 सं0 17
भैया भगवतीदास, अनादिबत्तीसिका, छ) सं0 7 11. भैया भगवतीदास, द्रव्य संग्रह कवित्त बंध, छं0 सं0 19 12. भैया भगवतीदास, अनादिबत्तीसिका, छं0 सं0 11,14 13. भैया भगवतीदास, अनादिबत्तीसिका, छं0 सं0 23, 24, 25, 26, 27 14. पं0 कैलाश चन्द्र शास्त्री, जैन धर्म, पृ0 सं0 94
गुरू गोपालदास वरैया, जैन जॉगरफी, गुरू गोपालदास वरैया स्मृति ग्रंथ, पृ0 सं0 243
15.
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