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________________ पाँच करोड़ तिरानवे लाख अठानवे हजार दो सौ छः है। "पंच कोटि अरू त्राणव लाख । सहस अठ्याणवें उपरि भाख ॥ । द्वय सो छह जिय छट्ठेथान । परमादी मुनि कहे बखान ।। 11 सप्तम गुणस्थान है अप्रमत्त संयत, जो मुनि प्रमाद और असावधानी से विरत रहकर दृढ़तापूर्वक संयम का पालन करते हैं, वे अप्रमत्त संयत कहलाते हैं। यहाँ कवि ने केवल इतना ही बताया है, कि इस गुणस्थान से यदि मुनि स्खलित हो जाये तो छठे गुणस्थान में पहुँचता है। यहाँ के निवासी जीवों की संख्या 2 करोड़ छियानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन है । 64 अप्रमत्त सप्तम परतक्ष कोटि दोय अरू छयानव लक्ष ।। सहस निन्याणव इक सो तीन। एते मुनि संयम परवीन ।। ?? "" " सप्तम गुणस्थान के पश्चात् दो श्रेणियां आरम्भ होती हैं उपशम और क्षयक श्रेणी। जब जीव अपनी प्रकृतियों और कर्मों को उपशम करता हुआ चलता है उसे उपशम श्रेणी कहते हैं और जब वह उन्हें क्षय करता हुआ चलता है उसे क्षयक श्रेणी कहते हैं तथा क्षयक श्रेणी में अष्टम, नवम, दशम और द्वादशम गुणस्थान है। इस प्रकार का संकेत कवि ने भी किया है'उपसम श्रेणि चढ़े गुणवान । अष्टम नवम दशम गुणथान । ' अष्टम गुणस्थान अपूर्वकरण है। करण से तात्पर्य परिणाम होता है। जब मुनि के चित्त में अपूर्व शुद्ध भाव आने लगते हैं तब वह अष्टम गुणस्थानवर्ती कहा जाता है। नवम गुणस्थान अनिवृत्तिकरण है, यहाँ आकर पूर्व संचित कर्म क्षीण होने लगते हैं और दशम गुणस्थान सूक्ष्म साम्पराय में मुनि अपनी कषायों (साम्पराय) को अत्यंत सूक्ष्म कर डालते हैं। कविवर भैया भगवतीदास ने इन गुणस्थानों के विषय में भी कुछ विशेष नहीं कहा है केवल उनके नाम बताकर उनसे स्खलित होने पर नीचे के गुणस्थान में जाने अन्यथा ऊपर के गुणस्थान में जाने मात्र का संकेत किया है। इनमें निवास करने वाले जीवों की संख्या का पृथक-पृथक श्रेणीवार उल्लेख किया है। उपशम श्रेणी में अष्टम नवम तथा दशम गुणस्थान में दो-दो सौ निन्यानवे है। तीनों का योग आठ सौ सत्तानवे है। क्षयक श्रेणी के अष्टम गुणस्थान में पाँच सौ अट्ठानवे हैं नवम तथा दशम में भी यही संख्या है। ग्यारहवां गुणस्थान उपशांत कषाय है। इसमें उपशम श्रेणी वाला मुनि ही आता है। कर्म प्रकृतियों को शांत कर देने से परिणाम अत्यंत शुद्ध हो जाते हैं किन्तु मोह कषाय आदि जल से भरे हुए पात्र Jain Education International (170) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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