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अध्यक्ष संस्कृत विभाग, वर्धमान कालेज बिजनौर के ग्रंथों तथा सत्परामर्श से भी मुझे बहुत सहायता मिली है।
धर्मपुरा देहली निवासी वयोवद्ध सज्जन श्री पन्नालाल जी अग्रवाल के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ जिन्होंने बिना किसी पूर्व परिचय के दिल्ली के जैन शास्त्रागारों से हस्तलिखित ग्रंथों की सूचियाँ तथा प्रतियाँ उपलब्ध कराने में मेरी सहायता की। मैं पं० परमानन्द जी शास्त्री तथा पं० बालचन्द्र जी शास्त्री के प्रति अपना आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने वीर सेवा मन्दिर, देहली से उपयोगी सामग्री प्राप्त करने की पूर्ण सुविधा मुझे प्रदान की तथा समय-समय पर मेरी शंकाओं का समाधान किया। उन सभी शुभाकांक्षी बंधुओं के प्रति मैं आभारी हूँ जो किसी न किसी रूप में इस कार्य में सहायक बने हैं। मेरी बेटी मनीषा, रुचिका, पुत्र मयंक एवं पति श्री ब्रजवीर प्रसाद जैन (अब स्वर्गीय) ने मुझे इस महती साधना को पूर्ण करने में पूरा सहयोग दिया।
हिन्दी साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डॉ० रामस्वरूप आर्य ने अंतर्दर्शन तथा जैन साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठ ज्ञाता एवं मनीषी डॉ. कस्तूर चन्द कासलीवाल ने प्रस्तुत ग्रंथ की भूमिका लिखने की जो कृपा की है, उसके लिये मैं उनके प्रति श्रद्धावनत हूँ। प्रथम संस्करण को देख कर जैन धर्म के परम विद्वान पं० नाथूराम डोंगरीय जैन ने अपनी जो सम्मति भेजी थी उसे भी इस संस्करण में सम्मिलित किया गया है, उनके प्रति भी मैं बहुत आभारी हूँ।
इस ग्रंथ के द्वितीय संस्करण को प्रकाशित करने का उत्तरदायित्व अखिल भारतीय साहित्य कला मंच के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. महेश "दिवाकर' अध्यक्ष, हिन्दी विभाग गुलाब सिंह हिन्दू डिग्री कॉलेज, चाँदपुर ने स्वयं लेकर मुझे अनुग्रहीत किया है।
-उषा जैन
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