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________________ सदृश है, और मध्यलोक का आकार खड़े किये हुए आधे मृदंग के ऊर्ध्व भाग के समान है। ऊर्ध्व लोक का आकार खड़े किये हुए मृदंग के सदश। सम्पूर्ण लोक की ऊंचाई 14 राजू (देखिये परिशिष्ट) है। अर्धमृदंग की ऊंचाई सम्पूर्ण मृदंग की ऊंचाई के सदृश हैं। अर्थात् अर्धमृदंग सदृश अधोलोक जैसे सात राजू ऊंचा है, उसी प्रकार पूर्ण मृदंग के सदृश ऊर्ध्वलोक भी सात राजू ऊंचा है। क्रम से अधोलोक की ऊंचाई सात राजू, मध्यलोक की ऊंचाई एक लाख (1,00,000) योजन और ऊर्जालेक की ऊंचाई एक लाख योजन कम सात राजू है। चारों ओर से देखने पर लोक की ऊंचाई चौदह राजू, मोटाई (उत्तर और दक्षिण दिशा में) सर्वत्र सात राजू, और चौड़ाई (पूर्व और पश्चिम दिशा में) मूल में सात राजू, सात राजू की ऊंचाई पर एक राजू साढ़े दश राजू की ऊंचाई पर पांच राजू और अन्त में (चौदह राजू की ऊंचाई पर) एक राजू है। गणित करने से लोक का क्षेत्रफल 343 घन राजू होता है।15 भैया भगवतीदास ने भी लोक का क्षेत्रफल इसी प्रकार बताया है "घनाकार सब कहिये बखान। त्रयशत अरू तेतालिस मान।।"16 यह समस्त लोक तीन प्रकार के वातवलय (पवन) से वेष्टित है। इस लोक के बिल्कुल मध्य में ऊपर से नीचे तक एक राजू प्रमाण विस्तारयुक्त (एक राजू चौड़ी, एक राजू लम्बी) चौदह राजू ऊंची त्रसनाली (वसनाड़ी) है। केवल इस त्रसनाली में ही त्रस जीव (द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक) होते हैं इससे बाहर नहीं। स्थावर जीव इसके भीतर बाहर सर्वत्र रहते हैं। भैया भगवतीदास ने भी लोकाकाश के मध्य त्रसनाली की इसी प्रकार स्थिति बताई है "इहि मधि त्रसनाड़ी इक जाना ताके भेद कहूं उर आन।। चवदह राजू कही उतंग। राजू इक पोली सरवंग।। तामहिं त्रस थावर को थान। याकै परें सु थावर मान।।" यह भी तीन भागों में विभक्त है अधोलोक, मध्यलोक व ऊर्ध्वलोक। मूल से सात राजू की ऊंचाई तक अधोलोक है, इसके पश्चात एक लाख योजन की ऊंचाई तक (सुमेरू पर्वत की ऊंचाई के बराबर) मध्यलोक तथा तत्पश्चात् चौदह राजू तक ऊर्ध्वलोक है। अधोलोक मेरूतल के नीचे (मध्यलोक के नीचे) का लोक का शेष क्षेत्र अघोलोक है, जो अर्ध मृदंग अथवा वेत्रासन के आकार वाला है। वह सात (155) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002541
Book TitleBhaiya Bhagavatidas aur Unka Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUsha Jain
PublisherAkhil Bharatiya Sahitya Kala Manch
Publication Year2006
Total Pages252
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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