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________________ आद्य मिताक्षर डॉ. रमेशचन्द जैन अध्यक्ष-संस्कृत विभाग वर्द्धमान कॉलेज, बिजनौर, उ. प्र. जैन धर्म निवृत्ति प्रधान धर्म है । वर्तमान अवसर्पिणी काल में इराके प्रणेता आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव माने गये हैं। हिन्दू पुराणकारों ने उनका गौरव के साथ उल्लेख किया है । वे योगमार्ग के प्रवर्तक स्वीकार किए गए हैं। श्रीमद् भागवत में कहा गया है "भगवान ऋषभदेव ने योगियों के करने योग्य आचरण दिखलाने के लिए ही अनेक योगचर्याओं का आचरण किया, क्योंकि वह स्वयं भगवान्, मोक्ष के स्वामी एवं परम महत् थे । उनको बिना चाहे आकाश में उड़ना, मन के समान सर्वत्र गति, अन्तर्धान, परकाय प्रवेश और दूरदर्शन आदि सिद्धियाँ प्राप्त थीं, किन्तु उनको उनकी कुछ चाह नहीं थी । इस तरह भगवान् ऋषभदेव लोकपाल शिरोमणि होकर भी सब ऐश्वर्यों को तुणतुल्य त्याग कर अकेले अवधुतों की भाँति आचरण कर विचरने लगे। देखने में वह एक सिड़ी जान पड़ते थे, सिवा ज्ञानियों के मूढजन उनके प्रभाव और ऐश्वयं का अनुभव नहीं कर सकते थे । यद्यपि वे जीवन्मुक्त थे, तो भी योगियों को किस प्रकार शरीर त्याग करना चाहिये, इसकी शिक्षा देने के लिए उन्होंने अपना स्थूल शरीर त्यागने की इच्छा की। जैसे कुम्भकार का चाक घुमाकर छोड़ देने पर थोड़ी देर तक स्वयं ही घूमता रहता है, उसी प्रकार लिङ्ग शरीर त्याग देने पर भी योग माया की वासना द्वारा भगवान्, ऋषभ का स्थूल शरीर संस्कार वश भ्रमण करता हुआ कोंक, बैंक, कुटक और दक्षिण कर्नाटक देशों में यद्रच्छा पूर्वक प्राप्त हुआ । जहाँ कुटकाचल के उपवन में सीड़ियों की तरह बड़ी जटा छिटकाये नंगधडंग ऋषभदेव जी १-भागवत पुराण स्कन्ध ५ अ. ५-६
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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