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________________ भारतीय परम्परा में ध्यान [ ३५ ) ध्यान और योग मुक्ति के कारण हैं और इनसे ही देह बन्धन का उवछेद होता है।* अद्वैत वेदान्त का परम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है । मोक्ष की प्राप्ति ज्ञान से होती है, कर्म से नहीं । मोक्ष तो स्वयं आत्मा का स्वरूप है, वह पहले से ही सिद्ध है, अत. कर्म द्वारा उसे प्राप्त करना सम्भव नहीं है । अज्ञान रूपी आवरण होने के कारण उसकी प्रतीति नहीं होती । ज्ञान के प्रकाश से वह प्रगट हो जाता है और उसकी यही प्राप्ति मोक्ष ही है ।.... जब साधक इस स्थिति में पहुँचता है तो उसका अज्ञान नष्ट हो जाता है और उसे सर्वत्र ग्रह्म ही भासित होता है । बौद्ध धर्म में ध्यान: बौद्ध साहित्य में योग के स्थान में 'ध्यान' और 'समाधि' शब्द शब्द का प्रयोग मिलता है । ध्यान बौद्ध धर्म का हृदय है । बौद्ध साधना पद्धति में ध्यान का अर्थ किसी विषय पर चिन्तन करना है। + परन्तु अभ्यास के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है, चित्त का अभ्यास ही ध्यान है | X बाह्य विषयों की आसक्ति से मुक्त होना ही ध्यान है । * वोधि प्राप्त होने से पूर्व तथागत बुद्ध ने श्वासोच्छ्वास का निरोध करने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपने शिष्य से कहा कि मैं श्वासोच्छवास का निरोध करना चाहता था. इसलिये मैं मुख, नाक एवं कर्ण में से निकलते हुए सांस को रोकने का, उसे निरोध करने का प्रयत्न करता रहा । लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली । इसश्रद्धा भक्तिध्यानयोगान्मुमुक्षो मुक्तेर्हेतुन्वक्ति ... यो वा एतेष्वेव तिष्छन्यमुष्य मोक्षोऽविद्याकल्पितादेहबन्धात् ॥ ( विवेक चूडामणि ४६ ) ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम् १ / १/४ अविद्यास्त भयो मोक्षः सा बन्ध उदाहृतः । ( सर्वदर्शनसंग्रह पृ० ७६३) + समन्तपासादिका, पृ० १४५-१४६ X ध्यान सम्प्रदाय, पु० ८१ * दि सूत्र आंव-ने-लेंग, पृ ४७ 4 अंगुत्तर निकाय ६३
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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