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शुक्ल ध्यान (२०७) भगवती आराधना में भी चार भेद कहे गये हैं । + धवला में पृथक्त्व वितर्क वीचार, एकत्व वितर्क अवीचार, सूक्ष्म क्रियाअप्रतिपाती और समुच्छिन्न क्रिया अप्रतिपाती से चार प्रकार कहे गये हैं। चारित्रसार में भी हरिवंश पुराण के समान ही वर्णन किया गया है वहाँ भी दो भेद व दोनों के प्रभेद रूप में चार भेद कहे गये हैं। और भी कई ग्रन्थों में इसके चारों भेदों को स्वीकारा गया है।... + ज्झाणं पुधत्त सवितक्कसवीचारं हवे पढमसुक्क । सवितक्केक्कत्तावीचारं ज्झाणं विदियसुक्कं ॥ सुहुमकिरियं तु तदियं सुक्कज्झाणं जिणेहिं पण्णत्तं । वेति च उत्थं सुक्कं जिणा समुच्छिण्णकिरिय तु॥ (भगवती आराधना, विजयोदया टी. १८७२-७३) - तं च चविहं-पुधत्तविदक्कवीचारं एयत्तविदक्कअवीचारं सुहु मंकिरियमप्पडिवादि समुच्छिण्णकिरियम प्पडिवादि चेदि । (षट्खण्डागम, धवला, टी० ५/४/२६/७७) = शुक्लध्यानं द्विविध शुक्लं परमशुक्लमिति ।। शुक्लं द्विविध पृथक्त्व वितर्कवीचारमेकत्व वितर्कावीचारमिति । परमशुक्ल द्विविधं सूक्ष्म क्रियाप्रतिपातिसमुच्छिन्नक्रियानिवृत्ति भेदात्।
(चारित्रसार २०३/४) ... (क) उत्तराध्ययन ३०/३५
(ख)मूलाराधना ४०४-४०५ (ग) राजवार्तिक १/७/१४/४० (घ) शुक्लपरमशुक्लं च शुक्लंध्यानमिति द्विधा।
सपृथक्त्वंवितर्काढय वीचारं शुक्लमादिमम् ॥ तथक्त्ववितर्काविचार शक्लं द्वितीयकम । प्रतिपातिविनिष्क्रान्तं शुक्लं सूक्ष्म क्रियाहेद्धयम् ।। समुच्छिन्नक्रिय शुक्लंद्विधेति परमम् स्मृतम् ॥ (मूलाचार
प्रदीप २०७५-७७) (3) सुक्के झाणे च उविहे च उच्पडोआरे पं० तं०-पुत्तवितक्के सवि
यारी १-एकत्तवितक्के अविचारी २-सुहमकिरिये अणियट्टी, ३ समुच्छिन्नकिरिये अप्पडिवाती ४॥ (स्थानाङग, पृ० १८८)