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________________ ( २०२) जैन परम्परा में ध्यान का स्वरूप : एक समीक्षात्मक अध्ययन के गर्म बर्तन में डाला हुआ जल क्रमशः हीन हो जाता है उसी प्रकार से शुक्ल ध्यान का मन अप्रमाद से क्षीण हो जाता है । = महर्षि पतञ्जलि के अनुसार योगी का चित्त सूक्ष्म में निविशमान होता है, तब परमाणु स्थिर हो जाता है और जब स्थूल में स्थिर होता है तब परम महतु उसका विषय बन जाता है।ध्येय : ध्येय का अर्थ है ध्यान का विषय । शुक्ल ध्यान के ध्येय एक द्रव्य के पर्याय हैं। शक्ल ध्यान का विषय धर्म ध्यान की अपेक्षा अति सूक्ष्म है । शक्ल ध्यान का ध्येय पृथक्त्व-वितर्क सविचार और एकत्व-वितर्क अविचार इन दो रूपों में विभक्त है। इनमें पहला ध्येय भेदात्मक रूप है और दूसरा अभेदात्मक । ध्याता : शुक्ल ध्यान का ध्याता धर्म ध्यान के. ध्याता के समान ही होता है । शुक्ल ध्यानी अतिशय प्रशस्त संहनन, वज्रर्षभनाराच-संहनन से युक्त होते हुए श्रुतकेवली होते हैं। बाद के दो शुक्ल ध्यानों का ध्याता सयोग केवली और अयोग केवली होता है ।..... अनुप्रेक्षा :___ शुक्ल ध्यान से चित्त के सुसंस्कृत हो जाने पर एवं ध्यान के समाप्त हो जाने पर चारित्र से युक्त जो ध्याता है, वह चार अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करता है। x वे चार अनुप्रेक्षा इस प्रकार = ध्यानशतक ७५ - पातञ्जल योगसूत्र १/४० .... एएच्चिय पुब्वाणं पुव्वधरा सुप्पसत्थसंघयणा । दोण्ह सजोगाजोगा सुक्काण पराण केलिणो ।। (ध्यानशतक ६४) x सुक्कज्झाण सुभाविय चित्तो चितेइ झाणविरमेऽवि। णिययमणुप्पेहाओ चत्तारि चरित्तसंपन्नो ।। (वही ६७).
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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