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धर्मध्यान का वर्गीकरण[१६५] इस लोक में रौद्रध्यानी, मिथ्यात्व एवं अविरति से युक्त एवं कृष्ण लेश्या से युक्त प्राणी ही जाते हैं जो हडक संस्थान वाले होते हैं। + यहाँ कोई न तो किसी का स्वामी होता और न ही मित्र और न ही कोई सम्बन्धी होता है । मध्य लोक :
यह लोक अधोलोक के ऊपर झालर के समान गोलाकार रूप में स्थित मध्यभाग वाला है, इस लोक में असंख्य द्वीप समुद्र गोल-गोल कड़ों के समान स्थित है। .... यह लोक तनवातबलय के अन्त भाग तक स्थित है । मेरु पर्वत द्वारा ऊपर तथा नीचे इस मध्य लोक की अवधि निश्चित है और मेरु पर्वत एक लाख योजन तक फैला हुआ है । - इस मध्य लोक में जम्बू द्वीप आदि द्वीप व लवण समुद्रादिक समृद्र हैं ।* सब ही द्वीप समुद्र असंख्यात एवं समवृत्त हैं। यह लोक चित्रा पथ्वी के ऊपर बहमध्य भाग में एक राज लम्बे और एक राज चौड़े क्षेत्र के अन्दर एक-एक को चारों ओर से घेरे द्वीप व समृद्र के रूप में स्थित है। + ज्ञानार्णव ३६/१५ - वही ३६/६८ ... (क) मध्यभागस्ततो मध्ये तत्रास्ते झल्लरीनिभः।
____ यत्र द्वीप समुद्राणां व्यवस्था वलयाकृतिः ।। (वही ३६/८२) (ख) द्विढिविष्कम्भाः पूर्वपूर्व परिक्षेपिणो वलयाकृतयः । (तत्वार्थ
सूत्र ३/८) - तन्मध्ये मेम्नाभिवृत्तो योजनशतसहस्त्र विष्कम्भो जम्बूद्वीपः ।
(तत्वार्थसूत्र ३/६) *क) जम्बूद्वीपादयो द्वीपा लवणोदादयोऽर्णवाः ।
स्वयम्भूरमणान्तास्ते प्रत्येक द्वीपसागराः ॥ [ज्ञानार्णव
३६/८३] (ख) जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः । (तत्वार्थ
सूत्र ३/७) (ग) मूलाचार १०७७ (ध) राजवार्तिक ३/३८/७/२०८/१७