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________________ ( ७ ) प्राक्कथन वर्तमान युग में जहाँ विज्ञान ने भौतिक समृद्धि के नये-नये आयाम स्थापित किये हैं वहाँ मानसिक तनाव व आकुलता को भी अनजाने में ही नवजीवन दे डाला है। भौतिक सुखों से उत्पन्न मानसिक अशान्ति के निराकरण के लिए पाश्चात्य जैसे विकसित कहे जाने वाले देश भी आज भारतीय संतों एवं महात्माओं की योग एवं ध्यान की शिक्षा के लिए लालायित रहते हैं । भारतीय योग की परम्पराओं में वैदिक, बौद्ध एवं जैन धर्म प्राचीन माने जाते हैं, जिन के साहित्य में ध्यान पर विशद् रूप से प्रकाश डाला गया है। जैन धर्म एक अध्यात्म प्रधान धर्म है । इसमें जो कुछ भी वर्णन किया गया है वह आत्मा के उत्थान को लक्ष्य में रखकर ही किया गया है । प्रत्येक प्राणी सुख तो चाहता है, पर वह यह नहीं जानता कि सुख स्वालम्बन के बिना असम्भव है । परालम्बन से प्राप्त सुख तो मात्र दिखावा है, वह सुख स्थायी नहीं होता । सच्चा सुख तो कर्मो के क्षय होने पर आत्मसिद्धि के द्वारा प्राप्त होता है। आत्मसिद्धि के लिए जैन धर्म ने ही नहीं अपितु सभी आस्तिकतावादी सम्प्रदायों ने 'ध्यान' को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। 'ध्यान' शब्द की शास्त्रकारों ने अनेक व्युत्पत्तियां की हैं। तत्त्वानुशासन में कहा गया है: "ध्यायते येन तद्ध्यानं यो ध्यायति स एव वा। यत्र वा ध्यायते यदवा ध्यातिर्वा ध्यानमिष्यते ॥ (तत्त्वानुशासन६८) जिसके द्वारा ध्यान किया जाता है वह ध्यान है अथवा जो ध्यान करता है वही ध्यान है, जिसमें ध्यान किया जाता है वही ध्यान है अथवा ध्यातिका [ध्येय वस्तु में परम स्थिर बुद्धि का नाम भी] ध्यान है । तत्त्वार्थ सूत्र में कहा गया है कि एकाग्र चिन्ता के निरोध का नाम ध्यान है । एक प्रधान को और अग्र आलम्चन को तथा मुख को कहते हैं चिन्ता नाम स्मृतिका है और निरोध उस चिन्ता का उसी एकाग्र विषय में वर्तन का नाम है । द्रव्य और पर्याय के मध्य में प्रधानता से जिसे विवक्षित किया जाये उसमें चिन्ता का जो
SR No.002540
Book TitleJain Parampara me Dhyana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSima Rani Sharma
PublisherPiyush Bharati Bijnaur
Publication Year1992
Total Pages278
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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