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सनिमित्तऽनिमित्तं वा, अं हास होइ इत्थ जीवस्त। सो हासमोहणीयस्स होइ कम्मस्त उ विवागो ॥५५॥ सच्चित्ताचित्तेसु य, बाहिरदव्वेसु जस्स उदए । होइ रई रइमोहे सो उ विवागो वियाणाइ ॥ ५६ ॥ सच्चित्ताचित्तेसु य, बाहिरदम्वेसु जस्स उदएणं । अरई होइ हु जीवे, सो उ विवागो अरइमोहे॥५७॥ भयवज्जियंमि जीवे, जस्सिह उदएणं हुंति कम्मस्स । सत्तवि भयठाणाई, भयमोहे सो विवागो उ ॥५८॥ सोगरहियंमि जीवे, जस्सिह उदएण होइ कम्मस्त। अक्कंदणाइसोगो, त जाणह सोगमोहणियं ॥५९॥ दुग्गंधमलिणगेसु य, अभितरबाहिरेसु दम्वेसु। जेण विलीयं जीवे उप्पजइ सा दुगुला उ ॥६०॥ छण्हवि होइ विवागो, मिच्चायो जा अपुवकरणस्स। चरमसमउ त्ति परयो, नथि विवागो उ उण्हंपि ॥६१॥ भणियो मोहविवागो, आउयकम्मं तु पंचमं भणिमो तं होइ चउपयारं नरतिरिय मणुदेवभेएहिं ॥ ६२ ॥ दुक्खं न देइ आउं, नेय सुहं देइ चउसुवि गइसु ।
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