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दुक्ख सुहाणाहारं, धरेइ देहट्ठियं जीवं ॥६३ ॥ जं नेरइयं नारयभवम्मि तहिं धरइ उबियंत पि । जाणसु तं निरयाउं, हडिसरिसो तस्स उ विवागो ॥ एवं तिरियं मणुयं, देवं तिरियाइएसु भावेसु। जं धरइ तब्भवगयं, तं तेसिं आउयं भणियं ॥६५॥ भणिय आउयकम्मं, छठें कम्मं तु भण्णए नाम । तं चित्तगरसमाण, जह होइ तहा निसामेह ॥६६ ॥ जह चित्तयरो निउणो, अणेगरूवाइँ कुणइ रूवाई। सोहणमसोहणाई, चुक्खाचुक्खेहिँ वण्णेहिं ॥६७॥ तह नाम पि य कम्मं, अणेगरूवाइँ कुणइ जीवस्स । सोहणमसोहणाई, इट्ठाणिहाइँ लोयस्स ॥ ६८ ।। गइयाइएसु जीवं, नामइ भेएसु जं तओ नामं । तस्स उ बायालीसं, भेया अहवावि सत्तट्ठी ॥१९॥ अहवावि हु तेणउई, भेया पयडीण हुंति नामस्स । अहवा तिउत्तरसयं, सव्वेवि जहकमं भणिमो ॥७॥ पढमा बायालीसा, गइ जाइ सरीर अंगुवंगे य। बंधण संघायण संघयण संठाणनामं च ॥ ७१ ॥
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