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है, जीवन-मुक्त दशा प्राप्त की है, ऐसे श्री जिनेन्द्र भगवान् एक ही मेरी गति हों । (२८) शुभध्याननीरैरुरीकृत्य शौचं,
___सदाचारदिव्यांशुकैभूषितांगाः । बुधाः केचिदर्हन्ति यं देहगेहे,
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥२६॥ अर्थ-कोई पण्डित पुरुष शुभ ध्यान रूप जल से पवित्र हो और सदाचार रूपी दिव्य वस्त्रों से अंगों को अलंकृत करके अपनी देह रूपी मन्दिर में जिन भगवान् के स्वरूप की पूजा करते हैं, वे एक ही जिनेन्द्र भगवान् मेरी गति हों। (२६) दयासूनतास्तेयनिःसंगमृद्रा-,
तपोज्ञानशीलगुरूपास्तिमुख्यैः । शुभैरष्टभिर्योऽय॑ते धाम्नि धन्यः,
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥३०॥
अर्थ-जो धन्य पुरुष दया, सत्य, अचौर्य, निःसंग मुद्रा, तप, ज्ञान, शील एवं गुरु की उपासना इन प्रमुख पाठ पुष्पों से जिन भगवान् की ज्ञानज्योति में पूजा करते हैं, वे श्री जिनेन्द्र भगवान् एक ही मेरी गति हों। (३०) महाज़िर्धनेशो महाज्ञा महेन्द्रो.
महाशान्तिभर्ती महासिद्धसेनः । महाज्ञानवान् पावनीमूत्तिरहन्,
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥३१॥ अर्थ-हे अर्हन् ! आप परम ज्योतिर्मय हैं, कुबेर के समान प्रात्म-ऋद्धि के स्वामी हैं, महान् आज्ञायुक्त हैं, महेन्द्र रूप परम ऐश्वर्य के भोक्ता हैं, महा शान्त रस के नायक हैं, महान् सिद्धों के पर्यायों की सन्तति युक्त हैं, केवलज्ञानी हैं और सबको-पावन करने वाली मति से युक्त हैं, वे आप श्री जिनेन्द्र प्रभु ही मेरी गति रूप हों। (३१) महाब्रह्मयोनिमहासत्त्वमूत्ति-,
___ महाहंसराजो महादेवदेवः । महामोहजेता महावीरनेता,
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥३२॥
जिन भक्ति ]
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