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न गौरी न गंगा न लक्ष्मी यदीयं,
वपुर्वा शिरो वाऽप्युरो वा जगाहे । यमिच्छाविमुक्तं शिवश्रीस्तु भेजे,
स एकः परात्मा गतिमें जिनेन्द्रः ॥१०॥
अर्थ - जिनकी देह पर गौरी (पार्वती) बैठी हुई नहीं है, जिनके सिर पर गंगा स्थित नहीं है और जिनके वक्षस्थल में लक्ष्मी का निवास नहीं है, किन्तु इच्छाओं से मुक्त जिन प्रभु का मोक्षलक्ष्मी जाप करती है, वे श्री जिनेन्द्र प्रभु एक ही मेरी गति हों । (१०)
जगत्संभवस्थेम विध्वंसरूप-,
रसत्येन्द्रजालैर्न यो जीवलोकम् । महामोहकूपे निचिक्षेप नाथः,
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ||११|
अर्थ - जिन प्रभु ने विश्व की उत्पत्ति, स्थिति एवं नाश स्वरूप मिथ्या इन्द्रजालों के द्वारा इस लोक को महा मोह रूपी कुँए में नहीं डाला, वे ही परमात्मा श्री जिनेन्द्र भगवान मेरी गति हों । ( ११ )
एक
समुत्पत्तिविध्वंस नित्य स्वरूपा,
यदुत्था त्रिपद्य व लोके विधित्वम् । हरत्वं हरित्वं प्रपेदे स्वभावैः,
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेन्द्रः ॥१२॥
अर्थ - जिन तीर्थंकर प्रभु से प्रकट उत्पत्ति, विनाश एवं नित्यता ( ध्रुवत्व) रूप त्रिपदी ही इस लोक में स्वभाव से ब्रह्मत्व, शिवत्व एवं विष्णुत्व को प्राप्त है, वे श्री जिनेन्द्र प्रभु मेरी गति रूप हों । ( १२ )
त्रिकालत्रिलोक त्रिशक्ति त्रिसन्ध्य-,
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त्रिवर्ग- त्रिदेव त्रिरत्नादिभावैः ।
यदुक्ता त्रिपद्येव विश्वानि बत्रे,
स एकः परात्मा गतिर्मे जिनेद्रः ||१३||
अर्थ -- जिन भगवान के द्वारा प्रतिपादित त्रिपदी त्रिकाल, त्रिलोक, त्रिशक्ति, त्रिसंध्या, त्रिवर्ग तथा त्रिरत्न प्रादि भावों के द्वारा समस्त विश्व को वरण की हुई है, वे श्री जिनेन्द्र प्रभु ही मेरी गति हों । (१३)
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[ जिन भक्ति
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