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हे प्रभु ! मेरी यह कुण्ठित वाणी आपके गुण ग्रहण करने के लिये उत्कंठित हो तो उसका कल्याण हो । इसके अतिरिक्त अन्य वाणी से क्या होगा ? (७)
तव प्रेष्योऽस्मि दासोऽस्मि, सेवकोऽस्म्यस्मि किङ्करः।
प्रोमिति प्रतिपद्यस्व, नाथ ! नातः परं बवे ॥८॥ हे नाथ ! मैं आपका प्रेष्य हूँ, दास हूँ, सेवक हूँ और किंकर हूँ। अतः "यह मेरा है" इस भाव से आप मुझे स्वीकार करें। इससे अधिक मैं कुछ भी नहीं कहता। (८)
श्री हेमचन्द्रप्रभवाद् - वीतरागस्तवादितः ।
कुमारपाल - भूपालः, प्राप्नोतु फलमीप्सितम् ॥६॥ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर द्वारा रचित इस श्री वीतराग स्तोत्र से श्री कुमारपाल भूपाल मुक्ति (कर्मक्षय) रूपी अभीप्सित फल प्राप्त करें। (६)
जिन भक्ति ]
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