SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तत्पश्चात् कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्रसूरीश्वर जी की सुप्रसिद्ध रचना "श्री वीतराग स्तोत्र" दी गई है । इसकी रचना परमार्हत् श्री कुमारपाल भूपाल के दैनिक स्वाध्याय के लिये की गई थी । श्री जिन भक्ति के रसिक प्रत्येक व्यक्ति के लिये यह कण्ठस्थ करने योग्य है और नित्य श्री जिनेश्वर भगवान के सम्मुख स्तुति करने के लिये उपयोगी है । श्री वीतराग स्तोत्र का आजीवन रटन करने वाले व्यक्ति के हृदय में से मिथ्यात्व का भूत सदा के लिये भाग जाता है और सम्यक्त्व का सूर्य अपनी सहस्रकिरणों के द्वारा चित्त रूपी भवन में सदा के लिये ज्योति फैलाता है, इसमें तनिक भी प्राश्चर्य नहीं है । उसके प्रत्येक प्रकाश में रचयिता ने भक्ति रस की गंगा, वैराग्य रस का निर्भर एवं ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित की है । उक्त धारा के प्रवाह में भव्य आत्माओं का मिथ्यात्व - मल धुल जाता है और सम्यक्त्व का प्रकाश जगमगाने लगता है । अन्त में परिशिष्ट में श्री जिन स्तवन की महिमा पूर्वपुरुषों के वचनानुसार गुजराती भाषा में विस्तार पूर्वक बताई गई है । पाठकों को उस पर भी चिन्तन-मनन करने का परामर्श दिया जाता है । श्री जिनभक्ति अत्यन्त कल्याणकारी अपूर्व वस्तु है । श्री जिनगुरणस्तुति उसका एक परम साधन है । इस बात की ओर भव्यात्मानों का ध्यान आकर्षित करने के लिये पूर्व महापुरुषों ने अथक परिश्रम किया है, जिसका समुचित प्राभास कराने के लिये परिशिष्ट का समावेश किया गया है । परिशिष्ट का लेखांकन करने में शास्त्रकार महर्षियों के आशय से विरुद्ध जो कुछ भी लिखा गया हो तथा स्तुतियों के अर्थ लिखने में न्याय, व्याकरण और सिद्धान्त शास्त्र से विपरीत जो कुछ भी लिखा गया हो उस सबके लिये मिच्छामि दुक्कड़ देते हुए सज्जनों को हंस चंचुवत् सार ग्रहण करने के लिये सूचित करता हूं । मुनि भद्रंकर विजय श्री करमचंद जैन पौषधशाला, अंधेरी पोष शुक्ला द्वितीया वीर संवत् 2468; वि. संवत् 1998 दिनांक 20-12-1941 viii ] Jain Education International For Private & Personal Use Only [ जिन भक्ति www.jainelibrary.org
SR No.002534
Book TitleJina Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadrankarvijay
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1989
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy