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नित्य पदार्थों में क्रम से अथवा बिना क्रम से अर्थ-क्रिया घटती नहीं है और एकान्त क्षणिक पक्ष में भी क्रम से अथवा क्रम के बिना अर्थक्रिया घटती ही नहीं है । (४)
यदा तु नित्यानित्यत्व -रूपता वस्तुनो भवेत् ।
यथार्थ भगवन्न व, तदा दोषोऽस्ति कश्चन ॥५॥ हे भगवन् ! आपके कथनानुसार यदि वस्तु की नित्यानित्यता हो तो किसी भी प्रकार का दोष नहीं आता है । (५)
गुडो हि कफहेतुः स्यान्नागरं पित्तकारणम् ।
द्वयात्मनि न दोषोऽस्ति, गुडनागरभेषजे ॥६॥ गुड से कफ उत्पन्न होता है और सौंठ से पित्त होता है। जब गुड और सौंठ मिश्रित कर ली जायें तब दोष नहीं रहता, किन्तु भेषज (औषधि) स्वरूप हो जाता है । (६)
द्वयं विरुद्ध नैकत्राऽसत्प्रमाणप्रसिद्धितः।
विरुद्धवर्णयोगो हि, दृष्टो मेचकवस्तुषु ॥७॥ इसी प्रकार से एक वस्तु में नित्यत्व एवं अनित्यत्व दो विरुद्ध धर्मों का रहना भी विरुद्ध नहीं है। प्रत्यक्ष प्रादि किसी भी प्रमाण से उसमें विरोध सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि मेचक (काबड़चीती) वस्तुओं में विरुद्ध वर्गों का संयोग प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है। (७)
विज्ञानस्यैकमाकारं, नानाकारकरम्बितम् ।
इच्छंस्तथागतः प्राज्ञो, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥८॥ विचित्र आकार रहित विज्ञान एक आकार वाला है। यह स्वीकार करने वाला प्राज्ञ बौद्ध भी अनेकान्तवाद का उत्थापन नहीं कर सकता। (८)
चित्रमेकमनेकं च, रूपं प्रामाणिकं वदन ।
योगो वैशेषिको वाऽपि, नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् ॥६॥ एक चित्ररूप, अनेक रूप युक्त प्रमाण सिद्ध है यह कहने वाला योग अथवा वैशेषिक अनेकान्तवाद का उत्थापन नहीं कर सकता। (६) जिन भक्ति ]
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