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= बृहत्कल्पभाष्यम्
आकुंचन, प्रसारण करता है उतनी ही बार चतुर्लघु का अवयाण आदि तैल से ग्लान का अभ्यंगन करने पर, प्रायश्चित्त आता है।
वर्म के लिए, जिसके पार्श्व घिस गए हों, गलितकुष्ठ और ३८३४.दिट्ठ सलोमे दोसा, णिल्लोमं णाम कप्पती घेत्तुं। अर्श के रोगी के लिए निर्लोमचर्म लिया जा सकता है।
गिण्हणे गुरुगा पडिलेह पणग तसपाण सतिकरणं॥ ३८४०.सोणिय-पूयालित्ते, दुक्खं धुवणा दिणे दिणे चीरे। सलोमचर्म के उपभोग में दोष देखे गए हैं अतः श्रमणों कच्छुल्ले किडिभिल्ले, छप्पतिगिल्ले व णिल्लोमं॥ को निर्लोमचर्म ग्रहण करना कल्पता है। उसके ग्रहण में रक्त और पीव से लिस वस्त्रों को प्रतिदिन धोना कष्टप्रद चतुर्गुरु का प्रायश्चित्त है। उसका प्रत्युपेक्षण शुद्ध नहीं होता। होता है। खाज, कटिभ-एक प्रकार का कुष्ठ, षट्पदिकापनक, त्रस प्राणी आदि उत्पन्न हो जाते हैं तथा स्मृतिकरण वान्-इनके लिए निर्लोमचर्म का ग्रहण किया जा सकता है। भी होता है।
३८४१.जह कारणे निल्लोमं, तु कप्पती तह भवेज्ज इयरं पि। ३८३५.भुत्तस्स सतीकरणं सरिसं इत्थीण एयफासेणं।
आगाढि सलोमं आदिकाउ जा पोत्थए गहणं । __ जति ता अचेयणम्मि, फासो किमु चेयणे इतरे॥ जैसे कारण में निर्लोमचर्म कल्पता है, वैसे ही सलोमचर्म
भुक्तभोगी इस प्रकार स्मृति करता है-इस चर्म का स्पर्श भी कल्पता है। आगाढ़ कारण में सलोमचर्म से प्रारंभ कर स्त्रियों के स्पर्श सदृश है। यदि अचेतन चर्म में यह स्पर्श है पश्चानुपूर्वी से पुस्तक पर्यन्त का भी ग्रहण करना चाहिए। तो सचेतन स्त्री के शरीर का स्पर्श कैसा होता होगा? ३८४२.भत्तपरिण गिलाणे, इसलिए निर्लोमचर्म भी नहीं लेना चाहिए।
कुसमाइ खराऽसती तु झुसिरा वि। ३८३६.सुत्तनिवाओ वुड्ढे, गिलाण तद्दिवस भुत्त जतणाए।
अप्पडिलेहियदूसाऽसती य आगाढ गिलाणे मक्खणट्ठ, घट्टे भिण्णे व अरिसाउ॥
पच्छा तणा होती॥ प्रस्तुत सूत्र में सलोमचर्म की अनुज्ञा कैसे? यह भक्तपरिज्ञावान् (अनशनी) तथा ग्लान के लिए यदि परुष सूत्रनिपात वृद्ध तथा ग्लान मुनियों के लिए है। जो चर्म उस तृणों की प्राप्ति न हो तो कुश आदि अशुषिर तृण लिए जाएं। दिन कुंभकार आदि से परिभुक्त हो उसे यतनापूर्वक लेकर उनके लिए अप्रत्युपेक्ष्यदूष्य ग्रहण करे। उसकी प्राप्ति न हो उसका उपभोग करे तथा आगाढ़ ग्लानत्व होने पर, तैल से तो यथाक्रम शुषिर, अशुषिर पश्चात् तृण ग्रहण करे। मर्दन किए जाने पर, जिसके पुत घिस गए हों, जो भिन्नकुष्ठी ३८४३.दुप्पडिलेहियदूसे, अद्धाणादी विवित्त गेहंति। हो, जिसके अर्श हो गया हो, उनके लिए निर्लोमचर्म लिया घेप्पति पोत्थगपणगं, कालिय-णिज्जुत्तिकोसट्ठा॥ जा सकता है।
_ विहार करते समय मार्ग में चोरों ने उपधि चुराली हो तो ३८३७.संथारट्ठ गिलाणे, अमिलादीचम्म घेप्पति सलोमं। वे दुष्प्रत्युपेक्ष्यदूष्य ग्रहण कर सकते हैं। वे कालिक
वुड्डा-ऽसहु-बालाण व, अच्छुरणट्ठा वि एमेव॥ उत्कालिकश्रुत की नियुक्ति आदि संगृहीत होंगी भांडागार की ग्लान के संस्तारक के लिए अमिला (अविला-भेड़) भांति होंगी, यह सोचकर पुस्तकपंचक भी ग्रहण करते हैं। आदि का सलोमचर्म ग्रहण किया जा सकता है। इसी प्रकार
नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा वृद्ध, असहिष्णु तथा बाल मुनियों के आस्तरण के लिए भी वह चर्म ग्रहण किया जा सकता है।
कसिणाई चम्माइं धारित्तए वा परिहरित्तए ३८३८.कुम्भार-लोहकारेहिं दिवसमलियं तु तं तसविहणं । वा॥ उवरि लोमे काउं, सोत्तं गोसे समप्येति॥
(सूत्र ५) ___ जो चर्म कुंभकार, लोहकार आदि के द्वारा दिन में परिभुक्त है वह बस प्राणी रहित होता है। संध्या समय में ३८४४.चम्मं चैवाहिकयं, तस्स पमाणमिह मिस्सिए सुत्ते। जब वे चले जाते हैं तब प्रातिहारिक रूप में ग्रहण कर, लोगों __ अपमाणं पडिसिज्झति, ण उ गहणं एस संबंधो।। को ऊपर कर रात में सोकर फिर प्रातः उसका प्रत्यार्पण कर पूर्वसूत्र में चर्म का अधिकार था। प्रस्तुत निर्ग्रन्थदेते हैं।
निर्ग्रन्थीप्रतिबद्ध सूत्र में उस चर्म का प्रमाण प्ररूपित है। ३८३९.अवताणगादि णिल्लोम तेल्ल वम्मट्ठ घेप्पती चम्म। अप्रमाण वाले चर्म का प्रतिषेध किया गया है, सर्वथा चर्म
घट्ठा व जस्स पासा, गलंतकोढेऽरिसासुं वा॥ ग्रहण करने का निषेध नहीं है। यह संबंध है। १. अवताण-यह 'लगाम' के अर्थ में देशी शब्द है। लगाम आदि चर्म पर लगाया जाने वाला तैल।
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