SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीसरा उद्देशक = ३७८४.सो निज्जराए वट्टति, कुणति य आणं अणंतणाणीणं । उस आर्या के शब्द सुनकर, रूप देखकर, परस्पर स बितिज्जओ कहेती, परियट्टेगागि वसमाणो॥ आलाप-संलाप से तथा बार-बार स्पर्श से मुनि के मन में उस वैयावृत्य में प्रवर्तमान साधु निर्जरा का भागी होता है मोह उत्पन्न हो सकता है। इन सबको सहन करने में असमर्थ और इससे अनन्तज्ञानियों की आज्ञा का पालन होता है। वह मुनि यतनापूर्वक चिकित्सा करे। दूसरे के साथ रहता हुआ दूसरे को धर्मकथा कहता है और ३७८९.अविकोविया उ पुट्ठा, भणाइ किं मं न पाससी णियए। एकाकी रहता है तो रात्री में जागृत अवस्था में रहता है। छग-मुत्ते लोलंतिं, तो पुच्छसि किं सहू असहू।। ३७८५.पडिजग्गिया य खिप्पं,दोण्ह सहूणं तिगिच्छ जतणाए। अगीतार्थ ग्लान साध्वी को पूछने पर वह कहती है-'क्या तत्थेव गणहरो अण्णहिं व जयणाए तो नेइ॥ तुम नहीं देखते कि मैं अपने ही मल-मूत्र में लुठ रही हूं। फिर उस साधु के द्वारा प्रतिजागरित वह ग्लान आर्या शीघ्र भी तुम पूछ रहे हो कि क्या मैं सहिष्णु हूं या असहिष्णु?' स्वस्थ हो जाती है। यदि प्रतिचरक साधु और वह ग्लान साधु ने कहासाध्वी दोनों सहिष्णु हों तो यतनापूर्वक चिकित्सा करना ३७९०.पासामि णाम एतं, देहावत्थं तु भगिणि! जा तुज्झं। उचित है। यदि उस साध्वी का गणधर निकट हो तो मुनि __ पुच्छामि धितिबलं ते, मा बंभविराहणा होज्जा। उसे वहां पहुंचा देता है। यदि गणधर अन्यत्र हों तो सार्थवाह 'भगिनी! तुम्हारी जो शरीर की अवस्था है, उसे मैं देख के साथ उसे भेजता है अथवा स्वयं यतनापूर्वक उसे वहां ले __रहा हूं। मैं तुम्हारे धृतिबल के विषय में पूछ रहा हूं। तुम्हारे जाता है। और मेरे ब्रह्मव्रत का खंडन न हो।' ३७८६.निक्कारणिगिं चमढण, कारणिगिं णेति अहव अप्पाहे। ३७९१.इहरा वि ताव सद्दे, रूवाणि य बहुविहाणि पुरिसाणं। गमणित्थि मिस्स संबंधि वज्जिते असति एगागी। . सोऊण व दट्टण व, ण मणक्खोभो महं कोति।। यदि वह साध्वी निष्कारण ही गण से निकलकर ३७९२.संलवमाणी वि अहं, ण यामि विगतिं ण संफुसित्ताणं । एकाकिनी हुई हो तो उसकी निर्भर्त्सना की जाती है। हट्ठा वि किन्तु एण्हिं, तं पुण णियगं धितिं जाण ॥ कारणवश अकेली हुई हो तो वह मुनि स्वयं उसे ले जाता है साध्वी कहती है-'मैं जब नीरोग थी तब भी पुरुषों के अथवा वह आर्या जिस गच्छ की हो उस आचार्य को संदेश शब्द सुनकर अथवा बहुविध रूप देखकर भी मेरे मन में कभी भेजता है। यदि उस आर्या को लेने के लिए कोई साध्वी क्षोभ नहीं हुआ। मैं उनके साथ संलाप करती हुई, उनके संघाटक नहीं आता है तो मुनि स्वयं उसे स्त्रीसार्थ के साथ, हाथों का स्पर्श करती हुई भी विकार को प्राप्त नहीं हुई। मैं अथवा उसके संबंधी मिश्र सार्थ के साथ अथवा संबंधीवर्जित नीरोग अवस्था में भी सहिष्णु थी, अब तो बात ही क्या है? सार्थ के साथ उसे भेजे। इन सबके अभाव में साधु उस तुम अपनी धृति को जानो।' अकेली साध्वी को गन्तव्य की ओर ले जाए। मुनि आगे ३७९३.सो मग्गति साहम्मि, सण्णि अहाभद्दिगं व सूई वा। चले और वह साध्वी न अतिनिकट और न अतिदूर, पीछे देति य से वेदणगं, भत्तं पाणं व पाउग्गं॥ पीछे चले। साधु असहिष्णु है। वह तब अन्य साधर्मिकी साध्वी की ३७८७.न वि य समत्थो सव्वो, मार्गणा करता है। उसके अभाव में संज्ञिनी-श्राविका की, हवेज्ज एतारिसम्मि कज्जम्मि। उसके अभाव में यथाभद्रिका की, उसके अभाव में सूतिका' कायव्वो पुरिसकारो, की गवेषणा करता है। वह यदि ग्लान साध्वी का वैयावृत्य समाहिसंधाणणट्ठाए॥ करने की इच्छुक हो तो उसे वेतन, भक्त-पान तथा प्रायोग्य ऐसे कार्य में अर्थात् साध्वी की परिचर्या करने में सभी देकर वैयावृत्य कराता है। साधु मनोनिग्रह करने में समर्थ नहीं होते। परंतु समाधि के ३७९४.एयासिं असतीए, ण कहेति जहा अहं खु मिं असहू। संधान के लिए मुनि को ऐसा पुरुषकार करना चाहिए जिससे सद्दादीजयणं पुण, करेमो एसा खलु जिणाणा॥ उस साध्वी की चिकित्सा भी हो और स्वयं का शील भी उपरोक्त प्रकार की स्त्रियों के अभाव में वह साधु उस खंडित न हो। ग्लान आर्या को यह न कहे कि मैं असहिष्णु हूं। वह तब ३७८८.सोऊण य पासित्ता, संलावेणं तहेव फासेणं। सोचता है हम शब्द आदि के विषय की यतना करेंगे। यह ____एतेहि असहमाणे, तिगिच्छ जयणाइ कायव्वा॥ जिनाज्ञा है। १. सूतिका-नवप्रसूतस्त्रीसूतिकर्मकारिणी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy