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जा सकता है यह अनुज्ञापना करने के लिए आर्यिका के उपाश्रय में मुनि जा सकता है।
३७२९, वसहीए असन्झाए, गोरव भय सद्ध मंगले चेव । उद्देसादी कार्ड, बाउं वा वि गच्छेज्जा ॥
स्वयं की वसति में अस्वाध्यायिक होने पर संयती के उपाश्रय में जाया जा सकता है। अथवा आचार्य स्वयं आर्यिकाओं को उद्देशन देने के लिए वहां जा सकते हैं। आचार्य के जाने से उनका गौरव, भय, श्रद्धा और मंगल बना रहता है। साध्वियों को वाचना देने वाली प्रवर्तिनी की मृत्यु हो जाने पर आचार्य स्वयं उनको वाचना देने वहां जाते हैं। ३७३०. उप्पन्ने अहिगरणे, विओसवेडं तहिं पसत्यं तु ।
अच्छेति खउरियाओ, संजमसारं ठवेडं जे ॥ आर्यिकाओं में परस्पर अधिकरण हो जाने पर, वे संयम के सारभूत तत्त्व-उपशम के एक ओर रखकर परस्पर कलुषितचित्त वाली होकर बातचीत नहीं करतीं, ऐसी स्थिति में उनको उपशांत करने के लिए आचार्य का वहां जाना प्रशस्त है।
३७३१.जइ कालगया गणिणी,
एतेण कारणेणं,
गणचिंताए वि गच्छेज्जा ॥ यदि प्रवर्तिनी कालगत हो गई हो और दूसरी कोई आर्यिका गणभार को वहन करने में समर्थ न हो, इस कारण से आचार्य गणचिन्ता करने के लिए वहां जा सकते हैं। ३७३२. अन्नं जक्खाइड, (व) खित्तचित्तं व वित्तचित्तं वा ।
उम्मायं पत्तं वा, काउं गच्छेज्ज अप्पन्नं ॥ कोई आर्या यक्षाविष्ट, क्षिप्तचित्त, तृप्तचित्त, उन्मादप्राप्त हो गई हो इनको स्वस्थचित्त करने के लिए आचार्य जा सकते हैं।
नत्थि उ अन्ना उ गणहरसमत्था ।
३७३३. जइ अगणिणा उ वसही,
वडा उज्झ व उज्झिहिति व ति नाऊण व सोऊण व,
उवधेतुं जे व जाएजा ॥ आर्यिकाओं की वसति जल गई है, जल रही है या जलेगी यह जानकर अथवा लोगों से सुनकर, अग्नि का निवारण करने के लिए वहां जाया जा सकता है। ३७३४. नइपूरेण व वसही, वुज्झइ वूढा व वुज्झिहिति वत्ति । उदगभरियं व सोच्या उवधेत्तुं तं तु बच्चेज्जा ॥ आर्यिकाओं की वसति नदी के पूर से बह गई है, बह रही है या बह जाएगी अथवा वसति पानी से भर गई है
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बृहत्कल्पभाष्यम्
यह सुनकर उसका निवारण करने के लिए वहां जाया जा सकता है।
३७३५. घोडेहि व धुत्तेहि व अहवा वि जतीवियारभूमीए । जयणाए व करेजं, संठवणाए व बच्चेज्जा ।। घोडकों - किसी अन्य संप्रदाय के साधुओं तथा धूर्त्त व्यक्तियों द्वारा उपसर्गित हो रही हों, उनका निवारण करने के लिए, या आर्यिकाएं यतियों की विचारभूमी में जाती हैं, इसका निवारण करने के लिए या यतनापूर्वक उनके लिए विचारभूमी की व्यवस्था करने के लिए या पूर्वकृत विचारभूमी की संस्थापना करने के लिए वहां जाया जा सकता है। ३७३६. पुत्तो वा भाया वा, भगिणी वा होज्ज ताण कालगया ।
अज्जाए दुक्खियाए, अणुसडीए वि गच्छेज्जा ॥ आर्थिका के पुत्र, भाई, भगिनी की मृत्यु हो जाने पर जो आर्यिकाएं दुःखसागर में निमग्न हैं, उनको अनुशिष्टि देने के लिए वहां जाना होता है।
३७३७. तेलोक्कदेवमहिया, तित्थयरा नीरया गया सिद्धिं । थेरा वि गया केई, चरणगुणपभावया धीरा ॥ ३७३८. बंभी य सुंदरी या, अन्ना वि य जाउ लोगजेट्टाओ । ताओ वि य कालगया, किं पुण सेसाउ अज्जाउ ॥ ३७३९. न हु होइ सोइयव्वो, जो कालगओ दढो चरित्तम्मि | सो होइ सोतियव्वो, जो संजमदुब्बलो विहरे ॥ ३७४०, लळूण माणुसत्तं, संजमसारं च बुल्लभं जीवा । आणाइ पमाएणं, दोग्गइभयवगुणा होति ॥ अनुशिष्टि में उनको कहे
भुवनत्रयवासी देवताओं से पूजित तीर्थंकर भी कर्मरजों से मुक्त होकर सिद्धिगति को प्राप्त हो गए। अनेक स्थविर मुनि तथा चरमशरीरी चरणगुणप्रभावक तथा धीर आचार्य भी दिवंगत हो गए । ब्राह्मी, सुंदरी तथा अन्य लोकज्येष्ठ साध्वियां भी कालगत हो गईं तो फिर शेष आर्यिकाओं की बात ही क्या ?
उसके विषय में कोई शोक नहीं करना चाहिए जो चारित्र में दृढ़ रहकर कालगत हुआ है। वही शोचनीय होता है जो संयम में दुर्बल होकर विहरण करता है, जीता है।
मनुष्य जीवन को पाकर भी जीवों के लिए संयमसार की प्राप्ति दुर्लभ होती है। उसको पाकर जो जीव भगवान् की आज्ञा के पालन में प्रमाद करते हैं, वे दुर्गति के भय को बढ़ाने वाले होते हैं।
३७४१. पुत्तो पिया व भाया,
अज्जाणं आगओ तहिं कोई।
घित्तूण गणहरो तं
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वच्चति तो संजतीवसहिं ॥ यदि आर्याओं का पुत्र, पिता, भ्राता कोई वहां आया
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