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________________ कथा परिशिष्ट = ==७२९ १३४. अमात्य-बटुक दृष्टान्त एक दिन रंक बटुक जीमनवार में गया। वहां दूध, घी आदि से बना गरिष्ठ भोजन अतिमात्रा में कर लिया फिर राजमार्ग से जाने लगा। उसके पेट में दर्द होने लगा। धीरे-धीरे जी मचलने लगा और वमन शुरू हो गया। रंक बटुक को वमन करते हुए अमात्य ने देख लिया। उसने जैसा खाया वैसा ही निकल गया। रंक बटुक ने पुनः उसे खा लिया। यह देखकर अमात्य को वमन होने लगा। अब अमात्य जब-जब भोजन करता उसे वमन हो जाता। पाचन अस्वस्थ होने से एक दिन मृत्यु की गोद में सो गया। गा. ५८३१७. पृ. १५३८ १३५. रत्न वणिक् एक वणिक् रत्न प्राप्त करने की इच्छा से घर से निकला। जलपथ, थलपथ की क्लेशपूर्ण यात्रा करते हुए अति कठिनाई से पांच रत्नों को प्राप्त किया। फिर वह स्वदेश के लिए रवाना हुआ। रास्ते में एक भयंकर अटवी आ गई। अटवी भील, डाकू आदि से आकीर्ण थी। उसने सोचा-इस अटवी को निर्विघ्न कैसे पार किया जा सकता है। उसने रत्नों को एक स्थान पर सुरक्षित छुपा दिया। कुछ चमकीले पत्थर लेकर चलते-चलते अटवी में रोने लगा। रोता हुआ बोलना शुरू किया कि मेरे रत्न हरण हो गए, मैं लूटा गया। उसकी आवाज सुन-चोर, भील सभी एकत्रित हो गए। और बोले-कहां है तुम्हारे रत्न? कौन ले गया? कैसे थे तुम्हारे रत्न? उसने पत्थरों की ओर इशारा किया। उन्होंने उसे पागल जानकर वहीं छोड़कर चले गए। कुछ दिन वणिक् ऐसे ही करता रहा। धीरे-धीरे अपने देश का रास्ता परिचित कर लिया। एक रात में वह रत्न लेकर उसी प्रकार बोलते-बोलते अटवी को पार कर गया। रास्ते में भयंकर प्यास सताने लगी। कहीं पानी नहीं दिखा। उसने सोचा क्या करूं? थोड़ी दूरी तय करने पर दुर्गन्धयुक्त पानी देखा। 'इसे पी प्यास शान्त करता हूं नहीं तो मैं मर जाऊंगा। ये रत्न क्या काम आयेंगे?' ऐसा सोचकर उसने पानी पी प्यास शान्त की। फिर अपने घर गया और स्वजनों के साथ आराम से रहने लगा। गा. ५८५७,५८५८ वृ. पृ. १५४५ १३६. असार संसार एक ब्राह्मण था। उसकी पत्नी बहुत बीमार हो गई। इलाज कराने पर भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ। एक दिन उसकी मृत्यु हो गइ। पुत्र मां की अस्थियां लेकर गंगा नदी गया। पैदल जाने से बहुत समय बीत गया। पीछे थ पुत्रवधु का परस्पर संबंध हो गए। हास्य-क्रीड़ा आदि करने लगे। निर्लज्ज होकर दोनों भोग भोगते। पुत्र अचानक घर आया, उसने पिता और पत्नी का व्यवहार देखा और संसार से विरक्त हो साधु बन गया। गा. ५९४२ वृ. पृ. १५६७ १३७. मोक चिकित्सा महाविषधर सर्प ने राजा को डस लिया। विष फैलने लगा। वैद्य को बुलाया गया। वैद्य ने आते ही राजा की स्थिति देखी और कहा-किसी का मूत्र औषध रूप में राजा को दिया जाए जो राजा स्वस्थ हो सकता है। एक रानी का मूत्र औषधी रूप में राजा को दिया गया, धीरे-धीरे विष उतर गया और राजा स्वस्थ हो गया। राजा ने पूछा-कौनसी औषध दी जिससे मेरा विष उतर गया। अमात्य ने बता दिया कि अमुक रानी का मूत्र। राजा उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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