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________________ ७३० बृहत्कल्पभाष्यम् रानी के प्रति अतिआसक्त हो गया। उसके साथ निरंतर प्रतिसेवना करने लगा। अत्यधिक काम सेवन से राजा का प्रचुर मात्रा में वीर्य क्षय होने लगा। राजा मरणासन्न हो गया। वैद्य आया, उसने राजा के रोग को समझा फिर चिंतन कर कहा--यदि वीर्य को दूध के साथ राजा को दिया जाए तो राजा स्वस्थ हो सकता है। वैसा ही किया गया। राजा स्वस्थ हो गया। गा. ५९८७-५९८८ वृ. पृ. १५८१ १३८. खिंसना दोष . एक साधु के पास जो उपसंपदा ग्रहण करता वह पहले उसके जाति, कुल, देश और कर्म व्यवसाय के विषय में पूछता। आगंतुक शिष्य पढ़ने लगते। यदि कहीं वे स्खलित हो जाते तो शिक्षक साधु उनकी जाति आदि से खिंसना करता। तब वे प्रतीच्छक सोचते-हम यहां सूत्रार्थ ग्रहण करने के आशय से आए थे किन्तु हमारी खिंसना होती है। यह बात सब जगह प्रसारित हो गई। अब उसके पास सूत्रार्थ ग्रहण करने के लिए कोई भी साधु हिचकिचाते। इससे श्रुतहानि होने लगी। __एक साधु ने सोचा। मैं उस मुनि के पास जाकर सूत्र और अर्थ ग्रहण करूंगा और उस मुनि को भी खींसना दोष से मुक्त करूंगा। उसने आचार्य से उस मुनि के पास उपसंपदा ग्रहण करने की अनुमति मांगी। आचार्य ने कहा-वह मुनि अभी गोबरग्राम में मिलेगा। यह सुन वह वहां से प्रस्थित हो गोबरग्राम पहुंचा। ग्राम में पहुंच उसने लोगों से मुनि की जाति-कुल आदि के विषय में जानकारी ली। उसे ज्ञात हुआ मुनि की माता धन्निका नाम की दासी थी। वह खल्वाट कोलिक के साथ रहती थी। वह जानकारी ले वह साधु उपसंपदा ग्रहण करने उस मुनि के पास पहुंचा। उपसंपदा ग्रहण करवा कर मुनि ने आगंतुक साधु से उसकी जाति, कुल आदि के विषय में पूछा। तब वह मौन रहा। मौन देख मुनि ने सोचा निश्चिन्त ही यह हीन कुल का है। अतः आदतानुसार उसने आग्रह पूर्वक पूछा। तब उस साधु ने कहा-आपके पास उपसंपदा ग्रहण कर ली है। आपने क्या छूपाना। किसी दूसरे के समक्ष ऐसी कष्टपूर्ण बात कैसे कहूंगा? बइदिस नगर के निकट गोबरग्राम में एक धूर्त्त कोलिक खल्वाट स्थविर था। उसके नापित की दासी धन्निका नाम की पत्नि थी। मैं उनका पुत्र हूं। यह बात मैं केवल आपको बता रहा हूं। इसे आप गुप्त रखना। मैं जब गर्भ में था तब मेरा बड़ा भाई प्रव्रजित हो गया। मैंने जब यह सुना तब भाई के अनुराग से मैं भी प्रव्रजित हो गया। यद्यपि मेरे भाई का ऐसा आकार नहीं हैं-आकार का विसंवाद है फिर भी जाति आदि के चिह्नों से संवादिता है। ___ यह सुन खिंसना दोष करने वाला मुनि सोचने लगा-मैं इस साधु द्वारा निपुण उपाय से छला गया हूं। अब यदि इसकी खिंसना करूंगा तो मेरी खिंसना होगी। यह मेरा छोटा भाई बन गया है। फिर उस साधु से प्रतिबुद्ध हुआ। 'मिच्छामि दुक्कडं' ले उसने उससे क्षमायाचना की और उसे सूत्रार्थ की वाचना भी दी। इस प्रकार उसका खिंसना दोष भी धीरे-धीरे मिट गया और श्रुतहानि को भी रोक लिया। गा, ६०९४-६०९८ १. पृ. १६११ १३९. चंडरुद्र आचार्य आचार्य चंडरुद्र अत्यन्त क्रोधी थे। एक बार वे अपने शिष्यों के साथ उज्जैनी पधारे। वे एकान्त में स्वाध्यायरत थे। इतने में ही एक नव विवाहित युवक मित्रों के साथ आया। साधुओं से वंदना कर बोला-भंते ! मुझे धर्म बताएं। साधुओं ने आचार्य के पास भेज दिया। आचार्य उसके उपहास को समझ गए। वह बोला-भंते! मुझे दीक्षा दें। आचार्य ने राख मंगवाई और उसका लोच कर लिया। मित्रों ने कहा-तुम भाग जाओ। वह भावों में मुनि बन गया। मित्र भाग गए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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