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________________ ७१८३ =बृहत्कल्पभाष्यम् चारित्र चींटियों से नष्ट हो जाता हैं। जो संयमश्रेणी में आरूढ़ होता है, वह यदा-कदा प्रमाद करके संभल जाता है। गा. ४५१६-४५१९ वृ. पृ. १२२० ९९. बगीचा एक बगीचा था। उसको सारणी से पानी पिलाया जाता था। सारणी में तिनके गिरे। किसी ने उन्हें नहीं निकाला। तिनके गिरते गए। धीरे-धीरे पानी का बहाव रुक गया। पानी के अभाव में बगीचा सूख गया। इसी प्रकार उत्तरगुणों की बार-बार प्रतिसेवना से दोषों का संचय होता है और प्रवहमान संयमजल अवरुद्ध हो जाता है, व्यक्ति चारित्र से च्युत हो जाता है। गा. ४५२२ वृ. पृ. १२२१ १००. शकट और मंडप शकट और मंडप पर सरसों के दाने डाले. वे उसमें समा गए। प्रतिदिन डालते गए, वे समाते गए। एक दिन ऐसा आया कि सरसों ने भार के कारण शकट और मंडप को तोड़ डाला। इसी प्रकार एक-एक दोष चारित्र पर अपना भार डालते रहे तो एक दिन चारित्र टूट जाता है। गा. ४५२२ वृ. पृ. १२२१ १००. वस्त्र दृष्टान्त नया वस्त्र। एक तैल बिन्दु उस पर पड़ा। उसका शोधन नहीं किया गया। उस पर धूल लग गई। दूसरीतीसरी बार भी उस पर तैल पड़ा। शोधन नहीं हुआ। कालान्तर में वह मलिन वस्त्र अत्यंत मलिन हो गया। इसी प्रकार चारित्र भी अपराधपदों से मलिन हो जाता है यदि उनका शोधन न किया जाए। गा. ४५२२ वृ. पृ. १२२१ १०१. अजापालवाचक एक बार आचार्य ने साधुओं को क्षेत्र प्रतिलेखना के लिए भेजा। वे साधु अगीतार्थ थे। साधु आज्ञा प्राप्त कर उस गांव में गए। उस गांव में एक भ्रष्ट व्रती साधु रहता था। उसका उस गांव में अच्छा प्रभाव था। उस गांव में वह प्रमाण पुरुष था। उस गांव में जाकर साधुओं ने लोगों से पूछा यहां कोई वाचक रहता है क्या? लोगों ने बताया हां रहता है। पूछा कहां है? बताया अरण्य में। वे साधु अरण्य में गए। बकरियों की रक्षा करते हुए उस साधु को देखा। वे उससे मिले बिना ही गांव की ओर मुड़ गए। उसने जाते हुए साधुओं को देखकर सोचा-इन्होंने मेरे आचार को जान लिया है। जरूर ये गांव में जाकर मेरे आचार को बता देंगे। वह कुपित होकर अतिशीघ्र पल्लीपति के पास गया और उन साधुओं को बंदी बना दिया। साधु पुनः आचार्य के पास नहीं पहुंच सके। आचार्य उनकी खोज करते हुए उस गांव में पहुंचे। लोगों से यथास्थिति की जानकारी कर वाचक के पास गए। अभिवादन कर उससे कहा ये साधु अगीतार्थ है। ऐसा कहकर उन्हें मुक्त करवाया। गा. ४५३७,४५३८ वृ. पृ. १२२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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