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कथा परिशिष्ट
९५. दास राजा एक दास राजा की सेवा करता था। एक बार राजा ने दास के कार्य पर प्रसन्न होकर उसे पारितोषिक रूप में एक राज्य दे दिया। दास अब उस राज्य का राजा बन गया। उस राज्य के प्रधान लोग दास रूपी राजा का न आदर करते, न अभ्युत्थान करते। अपितु उसका तिरस्कार करते। उसने ऐसा व्यवहार देखकर आदेश दिया कि जो विनय करेगा उसे बहुमान मिलेगा। जो तिरस्कार करेगा वह दंडित होगा। लोग समझ गए। विनय नहीं किया तो हमारे ही समस्या होगी।
वैसे ही साधु को प्राघूर्णक आचार्य आदि के प्रति विनय करना चाहिए।
गा. ४४३१,४४३२ वृ. पृ. ११९६
९६. भद्रक भोजिक राजा के निकट एक भोजिक रहता था। किसी कारण से राजा भोजिक पर प्रसन्न हो गया। प्रसन्न होकर पारितोषिक रूप में एक गांव दिया। वह गांव का प्रधान बन गया। गांववासी भोजिक को प्रधान रूप में स्वीकार कर उसका आदर, सम्मान करते। भोजिक के व्यवहार से सारे ग्रामवासी खुश थे। 'कर' का प्रसंग आया तो वृद्ध
और प्रौढ़ लोगों ने भोजिक से कहा-हम कर नहीं देंगे, हमारे पुत्र, पौत्र आदि 'कर' देंगे। उसने स्वीकार कर लिया। ग्रामवासी जो भी निवेदन करते, भोजिक सबकी बात स्वीकार कर लेता। इतने ऋजु व्यवहार के कारण अनेक गलत वृत्तियों का विस्तार हो गया। वे उसका अविनय करने लगे। भोजिक ने सारी स्थिति की जानकारी की। उस पर नियंत्रित करने के लिए जो अविनय करता, उपद्रव करता उसे दंडित किया जाता। दंड के भय धीरेधीरे पुनः लोग विनीतता को प्राप्त हो गए।
वैसे ही आचार्य के प्रति शिष्य विनय आदि नहीं करते तो आचार्य रुष्ट होकर प्रायश्चित्त देते हैं। अत्यन्त अपराध होने पर गच्छ से विच्छेद कर देते हैं। विनय नहीं करने पर इहलोक-परलोक दोनों बिगड़ जाते हैं।
गा. ४४५८ वृ. पृ. १२०३
९७. वक्खार भांड एक भाटिक एक नगर से दूसरे नगर में वक्खार-भांड लेकर गया। वक्खार स्वामी साथ में था। उसने कहा-कुछ ठहरो। वक्खार को उतारने का उपयुक्त स्थान ढूंढ लेता हूं। उस भाटिक ने कहा-मैंने तो भांडों को इस नगर में लाने की बात कही थी। यही नगर है। मैं अब अधिक रुक नहीं सकता। उसने वहीं भांडों को उतार डाला। अस्थान पर रखने के कारण वे सारे भांड नष्ट हो गए।
गा. ४४७७ वृ. पृ. १२०९
९८. शर्करा घट एक राजा ने शक्कर से भरे हुए दो घट मंगवाये। उस पर मुद्रा लगाकर दो पुरुषों को देते हुए कहा-इनकी सुरक्षा करना और मांगने पर देना। दोनों घट ग्रहण कर चले गए। एक पुरुष ने उस घट के नीचे राख लगाकर, उसे कंटिकाओं से वेष्टित कर दिया। उसे कपाटयुक्त निर्बाध प्रदेश में रख दिया और तीनों संध्याओं में उसकी देखभाल करता। दूसरे पुरुष ने शर्कराघट को कीटिनगर के पास स्थापित कर दिया। शक्कर की गध से चींटियों ने मुद्रा को छिन्न-भिन्न नहीं किया किन्तु नीचे से घट को चालनी बना दिया। उस जर्जरित बने घट में से सारी शक्कर खा डाली। कुछ समय बाद राजा ने घट मंगवाये। प्रथम पुरुष को पुरस्कृत किया। दूसरे पुरुष को प्रमाद करने के कारण दण्डित किया। इसी प्रकार मुद्रा रूपी मुनि लिङ्ग होने पर भी प्रमादयुक्त साधु के शक्कर रूपी
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