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________________ ३७ गाथा संख्या विषय ५६८० अधोमुक्त मुकुट उपाश्रय में रहने पर प्रायश्चित्त । आगाढ़ कारण में रहने की अनुज्ञा। ५६८१ वसति में सर्प आदि के होने पर चंदोवा आदि बांधने की विधि। ५८४ विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय में दो-तीन बार उतरने की कल्पनीयता। ५६३९ ऐरावती नदी कहां? और उसका प्रमाण। ५६४०-५६५२ नदी उतरने के मार्ग क तीन प्रकार। मुनि को किस मार्ग से जाना चाहिए? तीनों मार्गों का स्वरूप और उनसे लगने वाले दोष तथा ६४ भंगों के प्रकार। ५६५३,५६५४ कितने संघट्टनों तक जाना कल्पनीय? उससे होने वाले लाभ। ५६५५ किन कारणों से शेषकाल में नदी-उत्तरण विहित ? ५६५६,५६५७ किन स्थितियों में नौका आरोहण का निषेध ? क्यों? ५६५८ स्थल संक्रमण की यतना। ५६५९ संघट्ट और लेपयुक्त मार्ग में जाने का विकल्प कब? क्यों? ५६६०,५६६१ साधु के पानी में उतरने की विधि और वहां रक्षणीय यतना। ५६६२ लेप तथा लेपोपरी जल में जाने की विधि। ५६६३ अपवाद पद में मुनि के कर्तव्य का निर्देश। ५६६४ नौका में चढ़ने-उतरने की विधि। उवस्सय-पदं सूत्र ३१-३४ ५६६५ ऋतुबद्ध और वर्षावास ऋतु के योग्य उपाश्रय विषयक सूत्र। ५६६६ वसति प्रमाण विषयक सूत्र का आरंभ। ५६६७ तृण और पलाल ग्रहण से किसका ग्रहण ? ५६६८ अल्प शब्द का तात्पर्य है अभाव। ५६६९-५६७१ अप्पप्पाणा की जगह अपाणा क्यों नहीं? शिष्य का प्रश्न आचार्य का समाधान। ५६७२ बीज आदि विविध वनस्पतियों तथा उदक आदि पर बैठने से आने वाला प्रायश्चित्त। ५६७३ श्रवणप्रमाण वसति का स्वरूप। वहां रहने से लगने वाले दोष। ५६७४,५६७५ भिन्न-भिन्न वसतियों में रहने की यतनाएं। ५६७६ वर्षाकाल में रहने योग्य वसति का आकार। ५६७७,५६७८ उपाश्रय में सोने और बैठने के लिए फलक और संस्तारक का प्रमाण। ५६७९ कायोत्सर्ग में स्थित मुनि के आधार पर कौनसी वसति में वर्षावास की कल्पनीयता? पांचवां उद्देशक मेहुणपडिसेवणा-पदं सूत्र १-४ ५६८२ मुनियों के लिए तृणपुंज विजन-जन संपातरहित स्थान में रहने का दोष। ५६८३ 'अपि च' का अर्थ तथा उपसर्ग के दो प्रकार। ५६८४ ब्रह्मवतापाय का प्रतिपादक सूत्र। ५६८५,५६८६ सदृशाधिकारिक सूत्र होने पर भी अन्य अधिकारों का समावेश। जातरूप का दृष्टान्त। ५६८७ अन्योन्याश्रित संबंधों की चर्चा । ५६८८ निर्ग्रन्थ प्रतिसेवना के लिए देवता या देवी की विकुर्वणा और तद्विषयक प्रायश्चित्त। ५६८९ गच्छ निर्गम के दो प्रकार। ५६९०,५६९१ गच्छ में व्याघात के कारण और वहां से निर्गमन। ५६९२ महर्द्धिक को धर्म कहने का कारण। ५६९३,५६९४ किनसे व्याघात होता है? ५६९५ आचार्य द्वारा उपेक्षा करने पर प्रायश्चित्त। ५६९६-५७०० स्वाध्याय के व्याघात का स्वरूप। ५७०१-५७११ तीन प्रकार के उपसर्ग। देवीकृत उपसर्ग का निरूपण तथा तद्विषयक प्रायश्चित्त। ५७१२ अनुज्ञा के बिना गण को छोड़ने के दोष। ५७१३-५७२० गुरुकुलवास न छोड़ने के गुण। ५७२१-५७२५ निर्ग्रन्थी के लिए देवताकृत उपसर्ग का स्वरूप। अहिगरण-पदं सूत्र ५ ५७२६-५७४९ गण में कलह होने के कारण। उनका स्वरूप तथा प्रायश्चित्त विधि । भावाधिकरण का तात्पर्य। तीनों गतियों के गमन में उसका स्वरूप। अधिकरण के दोष आदि। ५७५०-५७६१ कलह करके परगण में जाने वाले भिक्षु, उपाध्याय, आचार्य आदि को प्राप्त होने वाला नानाविध प्रायश्चित्त और तद्विषयक साहुकार की चार पत्नियों का उदाहरण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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