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________________ ७०८ = बृहत्कल्पभाष्यम् नहीं। मंत्री मौन हो गया। कुछ क्षणों में ही हवा के झोंके से एक आम नीचे गिरा। राजा ने आम हाथ में ले लिया और सूंघने लगा। मंत्री ने फिर मना किया तब राजा बोला-मंत्री खाने का निषेध किया है सूंघने का नहीं। केवल सूंघने से मेरे पेट में नहीं जायेगा। धीरे-धीरे राजा आम चूसने लगा। मंत्री के मना करने पर भी वह नहीं माना। आम खाते ही शरीर में व्याधि उत्पन्न हो गई। राजा मृत्यु को प्राप्त हो गया। एक राजा को आम बहुत प्रिय थे। अत्यधिक आम खाने से शरीर में व्याधि पैदा हो गई। वैद्य ने उपचार किया। राजा स्वस्थ हो गया। वैद्य ने राजा से कहा-राजन्! आप भविष्य में कभी आम न खाएं। राजा ने वैद्य के सुझाव को स्वीकार किया और यथावत् पालन किया। तब राजा ने लम्बे समय तक राज्य का भोग किया। गा. २१६६ वृ. पृ. ६२१ ७२. मुरुण्ड दूत पाटलिपुत्र नगर में मुरूंड नाम का राजा था। एक बार उसका दूत पुरुषपुर में गया। सचिव से वह मिला सचिव ने उसे आवास स्थल दिया। वह राजा को देखने मिलने के लिए प्रस्थान करता, परंतु रक्त पट वाले भिक्षुओं का अपशकुन होता। वह लौट आता। तीसरे दिन राजा ने सचिव से दूत के विषय में पूछा। अमात्य राजभवन से प्रस्थित हो दूत के आवास पर आया और राजभवन में न आने का कारण पूछा। दूत ने यथार्थ बात अमात्य को बता दी। अमात्य तब दूत से बोला-इन रक्त पट भिक्षुओं का मार्ग के भीतर या बाहर अपशकुन नहीं होता, क्योंकि यह नगर इनसे भरा पड़ा है। यह बात सुनकर दूत राजभवन में प्रवेश कर गया। गा. २२९२-२२९३ वृ. पृ. ६५० ७३. राजाज्ञा पाटिलपुत्र में चन्द्रगुप्स राजा था। 'वह मयूरपोषक का पुत्र है' यह जानकर क्षत्रिय लोग उसकी आज्ञा का सम्मान नहीं करते थे। चाणक्य ने सोचा-आज्ञाहीन राजा कैसा? अतः वह काम करूं, जिससे राजाज्ञा की अखंड आराधना हो। एक बार चाणक्य कापटिक के रूप में घूम रहा था। एक गांव में उसे भिक्षा नहीं मिली। उस गांव में आम और बांस प्रचुर मात्रा में थे। आज्ञा को प्रतिष्ठित करने के लिए चाणक्य ने उस गांव में यह राजाज्ञा प्रेषित की-आमों का छेदन कर शीघ्र बांस के झुरमुट के चारों ओर उनकी बाड़ बनाई जाये। _ 'यह दुर्लिखित है-ऐसा सोचकर ग्रामीणों ने बांसों को काटकर आम्रवृक्षों के चारों ओर बाड़ बना दी। चाणक्य ने यह खोज करवायी कि गांव वालों ने राजाज्ञा का पालन किया या नहीं। जब उसे ज्ञात हुआ कि ग्रामीणों ने राजाज्ञा के विपरीत कार्य किया है, तब वह उस गांव में आया और गांव वालों को उपालम्भ देते हुए बोला-तुम लोगों ने यह क्या किया? बांस नगररोध आदि में काम आते हैं। तुमने उनको क्यों कांटा? राजाज्ञा का पत्र दिखाते हुए आगे कहा-राजाज्ञा कुछ और है और तुम लोगों ने कुछ और ही कर डाला। तुम अपराधी हो, दंडनीय हो। गांव के सारे लोग लज्जित हो गए। चाणक्य ने उनसे वृत्ति का निर्माण करा कर उस गांव को जला डाला। इसके भय से सारी जनता आज्ञापालन में रत हो गई। गा. २४८९ वृ. पृ. ७०४ ७४. सोपारक दृष्टान्त सोपारक नगर में राजा ने ५०० व्यापारियों से कर मांगा। उन्होंने स्वीकार नहीं किया। राजा ने कहा-या तो कर दो या अग्नि में प्रवेश करो। उन्होंने मरना स्वीकार कर लिया। उनकी ५०० पत्नियों ने उनके साथ अग्नि में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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