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________________ कथा परिशिष्ट ७०७ नहीं जाऊंगा। यदि राजा को अपने पूर्वजों का अनुग्रह प्राप्त करना हो तो राजा स्वयं आकर मुझे साथ ले जाए। पत्नी पुनः बोली-पतिवर! राजा के पास तुम्हारे जैसे अनुग्रह करने वाले अनेक ब्राह्मण हैं। यदि तुम्हें धन पाना हो तो वहां जाओ। वह राजा से दान लेने नहीं गया, धन से वंचित रह गया। गा. १८८३ वृ. पृ. ६८. क्रयिक दृष्टान्त कोई ग्राहक गन्ध की दुकान पर गया। रुपये दिये और गन्धपात्र खरीदा। दूसरे दिन उसी दुकान पर गया और मद्य मांगा। दुकानदार ने कहा मेरे यहां गन्धयुक्त वस्तु मिल सकती है मद्य नहीं। वैसे ही धर्म की दुकान में धर्म मिलता है खाद्य आदि वस्तुएं नहीं मिलती। गा. १९६५ वृ. पृ. ५७२ ६९. दंतपुर दृष्टान्त दंतपुर में राजा ने यह आज्ञा प्रसारित की कि कोई हाथी दांत न लाए? एक बार धनमित्र सार्थवाह के मित्र दृढ़मित्र ने हाथी दांतों को दर्भ में पूलों से आच्छादित कर ले आया। वे स्तेनाहृत हो गए। इसमें दांत और तृण-दोनों स्तेनाहृत माने गए। राजा द्वारा प्रतिषिद्ध दांत के कारण उन तृणों को लाना भी स्तेनाहृत माना जाता है। गा. २०४३ वृ. पृ. ५९१ ७०. कपट श्रावक बौद्ध श्रावक ने साध्वियों को देखा। उन साध्वियों में एक साध्वी अत्यधिक रूपवती थी। बौद्ध श्रावक उस पर मोहित हो गया। वह कपट से जैन श्रावक बन गया। प्रतिदिन उपाश्रय में आने-जाने लगा। साध्वियों से परिचित हो गया। साध्वियों का भी उस पर विश्वास हो गया। वह अच्छे श्रावक की गणना में आने लगा। ___ एक दिन वह उपाश्रय में आया वंदना की और निवेदन किया कि मैं मेरे गांव जा रहा हूं। आप साध्वियों को भिक्षा के लिए भेजें। साध्वियां उसके घर गई। उसने कहा-मेरे वाहन में मन्दिर है, आप वंदना करे फिर भिक्षा ग्रहण करना। यह सोचकर कि श्रावक कितना विवेकवान् है साध्वियां चैत्य वंदन के लिए वाहन पर आरूढ़ हुई। वे आरूढ़ हुई और तत्काल ही उसने वाहन को चालू कर दिया। इस प्रकार उनका अपहरण कर लिया। गा. २०५४ वृ. पृ. ५९४ ७१. आम्रप्रिय राजा एक राजा को आम्रफल बहुत प्रिय था। अत्यधिक आम खाने से उसके शरीर में व्याधि उत्पन्न हो गई। वैद्य ने उपचार किया। राजा स्वस्थ हो गया। लेकिन वैद्य ने भविष्य में आम खाने का बिल्कुल निषेध कर दिया। ___ एक दिन राजा और मंत्री शिकार के लिए जंगल में गये। बहुत दूर जाने पर राजा थक गया। अचानक राजा को आम का वृक्ष दिखाई दिया। वह उसकी छाया में बैठ विश्राम करने लगा। मंत्री ने कहा राजन्! हमें यहां नहीं बैठना चाहिए। दूसरे वृक्ष की छाया में चलते है। राजा ने कहा मंत्री वैद्य ने आम खाने का निषेध किया है बैठने का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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