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________________ कथा परिशिष्ट = =६८९ १४. श्रेणिक राजगृह में राजा श्रेणिक राज्य कर रहा था। उसकी रानी का नाम चेलना था। एक बार भगवान् महावीर राजगृह पधारे। राजा श्रेणिक और रानी चेलना वंदना कर विकाल वेला में लौट रहे थे। माघ मास का समय था। उसने रास्ते में एक प्रतिमाप्रतिपन्न मुनि को देखा। उस रात्रि में रानी चेलना का हाथ रजाई से बाहर आ गया। ठंड बढ़ी, उसका हाथ सुन्न हो गया। वह जाग गई, तब उसने अपना हाथ भीतर खींच लिया। हाथ के कारण पूरा शरीर ठंड से कांपने लगा। तब उसके मुंह से निकला-वह क्या करता होगा? श्रेणिक ने यह वाक्य सुना और वह सोचने लगा कि यह रानी द्वारा सांकेतिक पर पुरुष है। राजा रुष्ट हो गया। दूसरे दिन उसने अभय से कहा-अन्तःपुर को शीघ्र जला दो। आज्ञा देकर श्रेणिक भगवान् के पास गया। अभय ने पुरानी हस्तिशाला में आग लगा दी। श्रेणिक ने भगवान् से पूछा-भंते! चेलना एक पति वाली है या अनेक पति वाली। भगवान् बोले-एक पति वाली। यह सुनते ही श्रेणिक शान्त हुआ। अभय अन्तःपुर न जला दे, इसलिए शीघ्रता से वंदना कर महल की ओर लौटा। अभय मार्ग में ही मिल गया। श्रेणिक ने पूछा-क्या आग लगा दी? वह बोला-हां! तब श्रेणिक ने व्याकुल होकर कहा-तुम अग्नि में प्रविष्ट क्यों नहीं हो गए ? अभय बोला राजन्! मैं क्यों आग में प्रवेश करूं? मुझे तो दीक्षा ग्रहण करनी है। आप अनुमति प्रदान करें। श्रेणिक ने कहा ठीक है ले लो दीक्षा। फिर अभय बोला-राजन् ! अन्तःपुर नहीं जलाया, पुरानी हस्तिशाला जलाई है। तब श्रेणिक शान्त हुआ। गा. १७२ वृ. पृ. ५७ १५. उंडिका पत्रक . राजा की सेवा में तीन व्यक्ति थे। राजा उनकी सेवा से बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने प्रत्येक को एक-एक गांव की बख्शीस की। उनमें से एक व्यक्ति नगर के राजपुरुष के पास गया, मुद्रा रहित पत्र उसे दिखाया। दूसरा व्यक्ति पत्र लेकर गया किन्तु उस पर केवल मुद्रा थी। तीसरा व्यक्ति मुद्रा सहित पत्र ले गया। जिसमें गांव दिए जाने का निर्देश भी था। राजपुरुष ने तीनों के पत्र देखे। पहले व्यक्ति से कहा तुम्हारे पास पत्र है किन्तु इस पर मुद्रा नहीं है, अतः मैं तुम्हें गांव नहीं दे सकता। दूसरे से कहा-इस पत्र पर केवल मुद्रा है किन्तु इस पर लिखा हुआ कुछ नहीं है? अतः मैं तुम्हें भी कुछ नहीं दे सकता। तीसरे से कहा-इस पत्र पर मुद्रा भी है और निर्देश भी। इसलिए मैं तुम्हें गांव दे सकता हूं। गा. १९५ वृ. पृ. ६३ १६. चार मंखपुत्र चार मंख थे। उनमें से एक मंख फलक लेकर गांव में घूमता। न गाथा का उच्चारण करता और न अर्थ का कथन करता। उसे कुछ प्राप्त नहीं हुआ। दूसरा न फलक ग्रहण करता और न अर्थ का कथन करता, केवल पाठ का उच्चारण करता। वह भी लाभ प्राप्त नहीं कर सका। तीसरे मंख ने न फलक ग्रहण किया, न गाथा का उच्चारण किया और केवल अर्थ का कथन करता। वह भी लाभ से वंचित रहा। चौथे मंख ने फलक ग्रहण किया व गाथा का और अर्थ का उच्चारण भी करता। उसे लाभ प्राप्त होता था। पहले तीन मंख अपने कुटुम्ब का पोषण नहीं कर सके। केवल चौथा मंख ही अपने कुटुम्ब का भरण-पोषण करने में समर्थ हुआ। गा. २०० वृ. पृ. ६५ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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