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= बृहत्कल्पभाष्यम्
सागरचन्द्र बोला-कमलामेला! शांब ने कहा-मैं कमलामेला नहीं, कमलामेल हूं। सागरचन्द्र बोला-अच्छा अब तुम ही मुझे मिलाओगे। तब अन्य कुमारों ने शांब को मद्य पिलाया। वह मदिरा से मत्त हो गया तब उससे यह स्वीकृति ले ली कि वह कमलामेला से सागरचन्द्र को मिला देगा। शांब का नशा उतरा तब उसने सोचा-ओह! मैंने झूठा वादा कर लिया। क्या अब इससे इन्कार कर सकता हूं? अब तो मुझे इसका निर्वाह करना होगा।
शांब ने प्रद्युम्न से प्रज्ञप्ति विद्या की मांग की। उसने विद्या दे दी। कमलामेला के विवाह के दिन अपनी विद्या से उसने कमलामेला का प्रतिरूप बनाकर रख दिया और कमलामेला का अपहरण कर रेवती उद्यान में ले आया। वहां दोनों का विवाह हो गया। सागरचन्द्र और कमलामेला दोनों क्रीड़ा रत हो गए। इधर विद्या से बनी कमलामेला की प्रतिकृति विवाह होने पर अट्टहास करती हुई आकाश में उड़ गई। यह देखकर सभी क्षुब्ध हो गए। कमलामेला का अपहरण किसने किया? यह कोई नहीं जानता था। इतने में नारद ऋषि आए। उनसे पूछा तो वे बोले-'मैंने उसे रेवती उद्यान में देखा है। किसी विद्याधर ने अपहरण किया है।' सेना लेकर कृष्ण वहां पहुंचे। शांब विद्याधर का रूप बना कर युद्ध करने लगा। सारे राजाओं को पराजित कर दिया। तब स्वयं कृष्ण युद्ध के लिए तत्पर हो गए। शांब ने सोचा पिताश्री रुष्ट न हो जाए। वह उनके चरणों में गिर गया। कृष्ण ने आलिंगन किया। शांब बोला-मैंने इसे गवाक्ष से आत्महत्या करती हुई देखा अतः अपहरण किया। कृष्ण ने उग्रसेन को समझाया।
वे भोग भोगते हुए समय व्यतीत कर रहे थे। उन्हीं दिनों भगवान् अरिष्टनेमि पधारे। सागरचन्द्र और कमलामेला ने भगवान् के पास धर्म सुनकर अणुव्रत स्वीकार किया। सागरचन्द्र अष्टमी, चतुर्दशी को शून्यघर या श्मशान में एक रात्रि की प्रतिमा करने लगा।
यह बात धनदेव को ज्ञात हुई। उसने ताम्बे की तीक्ष्ण सुइयों का निर्माण करवाया। शून्यगृह में प्रतिमा में स्थित सागरचन्द्र की बीसों अंगुलियों, नखों में सुइयां ठोक दीं। उसने वेदना को समभाव से सहन किया। वह मरकर देवरूप में उत्पन्न हो गया। दूसरे दिन मृत्यु के कारणों की खोज की। खोजते हुए सागरचन्द्र के बीसों अंगुलियों के नखों में तांबे की सुइयां देखी। ताम्बे कूटने वाले से ज्ञात हुआ कि सुइयां धनदेव ने बनवाई थी। उसकी खोज करवाई। दोनों सेना में युद्ध प्रारंभ हुआ। तब सागरचन्द्र देव ने दोनों को उपशांत किया। कमलामेला ने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण कर ली।
गा. १७२ वृ. पृ. ५६
१३. शाम्ब का साहस
जाम्बवती ने कृष्ण से कहा-मैंने मेरे पुत्र शाम्ब का आचरण गलत नहीं देखा। कृष्ण ने कहा-मैं तुम्हें आज उसके आचरण को दिखाऊंगा। जाम्बवती ने आभीरी और कृष्ण ने आभीर का रूप बनाया। दोनों द्वारिका में छाछ बेचने निकले। शाम्ब ने आभीरी को देखा और बोला-आओ, मैं छाछ खरीदूंगा। आभीरी उसके पीछे-पीछे चलने लगी। शाम्ब ने एक देवकुल में प्रवेश किया। आभीरी को भी अन्दर आने का आग्रह करने लगा। उसने कहा-मैं अन्दर नहीं आऊंगी। तुम छाछ लो और मूल्य दे दो। आभीरी ने जब अन्दर जाने से आनाकानी की तो शाम्ब उसका हाथ पकड़ खींचने लगा। इतने में दौड़ता हुआ आभीर वहां आ गया। वह शाम्ब के साथ युद्ध करने लगा। अन्त में आभीर कृष्ण के रूप में और आभीरी जाम्बवती के रूप में प्रगट हो गई। यह देख शाम्ब लज्जा से मुंह छिपाकर भाग गया।
दूसरे दिन शाम्ब कीलों का निर्माण कर रहा था। वासुदेव ने पूछा-क्या कर रहे हो? वह बोला कीलें बना रहा हूं। कल की घटना के विषय में यदि कोई कुछ कहेगा तो मैं उसके मुंह में कील ठोक दूंगा।
गा. १७२ वृ. पृ. ५७
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