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________________ कथा परिशिष्ट =६८५ कैसे करते हैं? मां ने कहा-विनय करके। वह बोला विनय क्या होता है? उसने बताया-बड़ों को प्रणाम करना, नीचे झुकना और दूसरों के अभिप्राय अनुसार चलना। पुत्र ने मां के वचनों को स्वीकार किया और वहां से प्रस्थान कर दिया। रास्ते में उसने देखा, कुछ शिकारी ओट में छुपे हुए हैं। वे मृगों को मारना चाहते थे। इतने में वह बालक जोर से बोला-प्रणाम! उसकी आवाज सुनकर मृग जंगल में भाग गए। शिकारियों ने उसे पकड़ा और पीटने लगे। वह बोला-मुझे मत मारो, मुझे ऐसा ही बताया था कि बड़ों को प्रणाम करना। यथार्थ जानकर उसे छोड़ दिया। उससे कहा कभी ऐसा काम पड़े तब धीरे-धीरे जाकर प्रणाम करना, आवाज नहीं करना। वह आगे चला। रास्ते में धोबी कपड़े धो रहे थे। उनके कपड़े अनेक दिनों से गायब हो रहे थे। वे बहुत चिन्तित थे। उन्होंने सोचा-आज ध्यान रखेंगे कौन कपड़े चुराता है ? वह धीरे-धीरे चलकर उनके पास जाने लगा। धोबियों ने देखा और सोचा यही चोर होना चाहिए। उसे पकड़ा और पीटने लगे। वह बोला-'मेरा दोष नहीं है। मुझे ऐसा ही बताया था।' उसकी स्थिति जानकर उसे छोड़ दिया। फिर कहा-'अब कभी ऐसा देखो तो कहना (वस्त्र का) पानी झर जाए, साफ हो जाए (शुद्ध हो, रिक्त हो)।' वहां से आगे बढ़ा। किसान बीज बो रहे थे। उसने देखा और कहा-रिक्त हो, शुद्ध हो। किसान ने सुना और सोचा, ये दुष्ट ऐसा क्यों बोल रहा है? उसने भी उसे पकड़ा और पीटने लगा। वह बोला-मुझे मत मारो, मुझे ऐसा ही सिखाया था। यथास्थिति जानकर उसे सिखाया कि अब ऐसे अपशब्द मत बोलना। ऐसा कहना बहुत हो, गाड़ी भर-भर हो। वहां से आगे बढ़ा। लोग शव को श्मशान में ले जा रहे थे। उसने देखा और बोला-ऐसा बहुत हो गाड़ी भरभर हो। लोगों ने सुना और सोचा शोक बेला में ऐसा बोल रहा है? वहां भी वह पीटा गया। उसने सारी बात बता दी। उन्होंने कहा-ऐसे बोलो-ऐसा कार्य कभी मत हो। ऐसे कार्य का सदा वियोग रहे। वहां से आगे बढ़ा। उसने देखा विवाह का आयोजन है। वह बोला-ऐसा कार्य कभी न हो। लोगों ने उसके अशुभ वचन सुनकर उसकी पीटाई की। उसने यथार्थ बात बता दी। लोगों ने उसे शिक्षा देते हुए कहा-कभी ऐसे अवसर देखो तो कहना-ऐसे दृश्य प्रतिदिन हो। बार-बार हों। कुछ और आगे गया। देखा कि राजपुरुष एक कैदी को पकड़ कर ले जा रहे थे। वह बोला-ऐसे दृश्य हमेशा हो। लोगों ने समझाया, ऐसा नहीं बोलना चाहिए। ऐसा कहो-यह बंधन मुक्त हो जाए। ___मार को सहन करते-करते वह नगर के निकट पहुंच गया। एक स्थान पर मित्र गोष्ठी कर रहे थे। उन्हें देखकर बोला-'सब मुक्त हो जाएं। अलग-अलग हो जाएं।' वे सब उसको पीटने लगे। वह रोता हुआ बोला-मुझे मत मारो। मुझे ऐसा ही बताया था। उसे छोड़ दिया। ___ नगर में जाकर वह दंडिकुलपुत्र के पास सेवा के लिए रह गया। एक बार दुर्भिक्षु पड़ा। कुलपुत्र की पत्नी ने खाटी राब रांधी। उसने उससे कहा-'वे लोगों के बीच में बैठे हैं उन्हें बुला लाओ। राब ठंडी हो रही है। वह गया और जोर से बोला-'राब ठंडी हो रही है, चलो, जल्दी चलो।' वह लोगों के बीच लज्जित हो गया। घर जाकर उसने उपालंभ दिया। कभी बुलाना हो तो एकांत में धीरे-से कान में कहना चाहिए। वह बोला-ठीक, आगे से ध्यान रखूगा। कुछ दिन बाद घर पर आग लग गई। कुलपुत्र की पत्नी ने शीघ्र ही कुलपुत्र को बुला लाने के लिए भेजा। वह भाग कर गया और एकांत की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ देर बाद एकान्त होने पर धीरे से कान में कहा-घर जल रहा है, जल्दी करो। जब वह घर पहुंचा तब तक घर काफी जलकर राख हो गया। उसने कहा-कभी आग लग जाए तो उसे पानी, गोबर, गोरस आदि से बुझाने का प्रयत्न करना चाहिए। यहां तक आने की जरूरत नहीं है। एक दिन कुलपुत्र गर्म पानी से स्नान कर धूपित हुआ। उसने देखा-धूआं निकल रहा है। उसने तत्काल गोबर, गोमूत्र आदि लाकर उस पर फेंका। कुलपुत्र ने रुष्ट होकर उसे निकाल दिया। जो दूसरों को कहने योग्य को अन्यथा कहता है, वह अननुयोग है, सम्यक् बात कहना अनुयोग है। गा. १७१ वृ. पृ. ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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