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________________ विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय ५२०० अविनीत आदि तीनों पदों की अष्टभंगी। ५२०१-५२०४ अविनीत आदि को ज्ञान देने पर होने वाली हानियां और ज्ञान देने के आपवादिक कारण। ५२०५ योगवाही मुनि द्वारा कृत माया का रूप। तप के बिना श्रुतज्ञान का ग्रहण अफलित। ५२०७ अव्यवशमित कलह की व्याख्या। ५२०८ अव्यवशमित कलह वाले मुनि को वाचना देने से होने वाली हानि। ५२०९ अपात्र को वाचना देने पर इहलोक-परलोक की परित्यक्ति तथा विनय की हानि। ५२१० आपवादिक कारण जिनसे अपात्र को वाचना दी जा सकती है। गाथा संख्या विषय चार प्रकार तथा प्रत्येक का वर्णन। वातिक नपुंसक का स्वरूप। तद्विषयक बौद्ध उपासक का उदाहरण। ५१६६,५१६७ नपुंसक के १६ भेद। उनका स्वरूप। उनमें कौन- कौन से अप्रव्राजनीय और कौन से प्रव्राजनीय? ५१६८ प्रथम दस नपुंसकों को आचार्य द्वारा दीक्षा देने पर तथा दसों को प्रव्रज्या के लिए कहने पर तथा शेष छह को प्रव्रजित करने वाले आचार्य और प्रव्रज्या के लिए कहने वालों को प्रायश्चित्त। ५१६९-५१७१ नपुंसक वेदोदय को धारण करता है, उसको प्रव्रज्या देने में क्या दोष है ? शिष्य की शंका और आचार्य द्वारा समाधान। इस प्रसंग में वत्स और आम्र का दृष्टान्त। ५१७२-५१७४ पंडक को दीक्षा देने के कारण। ५१७५ कार्य संपन्न हो जाने पर नपुंसक मुनियों का विवेचन आवश्यक। ५१७६-५१८९ नपुंसक के दो प्रकार। दोनों को दीक्षा के लिए अयोग्य जानकर उनको श्रावक धर्म के पालन के लिए कथन । जनता के विश्वास के लिए कटिपट्टक आदि धारण करने का निर्देश। लिंग छुड़ाने के लिए अन्यान्य विधियों, सामाचारी की शिक्षा, सूत्रादि का अभ्यास तथा वेष आदि के त्याग के प्रयोग। उनको येन-केन प्रकारेण छोड़ने के उपाय। सूत्र ५ ५१९०-५१९६ अज्ञात अवस्था में पंडक आदि को प्रव्रजित कर देने पर वह ज्ञात हो जाए तो मुंडन आदि पंचक की क्रमशः कल्पनीय विधि। दुसण्णप्प-सुसण्णप्प-पदं सूत्र ८ ५२११ दुष्ट, मूढ़ और व्युद्ग्राहित ये सम्यक्त्व-ग्रहण, प्रव्रज्या और वाचना के लिए अयोग्य। ५२१२,५२१३ दुःसंज्ञाप्य के तीन प्रकार तथा तीनों पदों की अष्टभंगी। ५२१४ मूढ़ पद के निक्षेप के आठ प्रकार। ५२१५ द्रव्यमूढ़ का स्वरूप तथा तद्विषयक घटिकावोद्र वणिक् का दृष्टान्त। ५२१६ दिग्मूढ़, क्षेत्रमूढ़ और कालमूढ़ का स्वरूप। कालमूढ़ संबंधी पिंडार का उदाहरण। ५२१७ गणनामूढ़ तथा सादृश्यमूढ़ का स्वरूप। दोनों से संबंधित क्रमशः उष्ट्रारूढ़ और कुटुम्बिसंग्राम का दृष्टान्त। ५२१८ अभिभवमूढ़ और वेदमूढ़ का स्वरूप तथा वेदमूढ़ विषयक अनंगरतिराजा का दृष्टान्त। ५२१९-५२२२ वेदमूढ़ आदि से संबंधित दृष्टान्त का स्वरूप। ५२२३-५२२८ व्युद्ग्राहित का स्वरूप तथा उससे संबद्ध द्वीपजातपुरुष, पंचशैल वास्तव्य स्वर्णकार आदि का दृष्टान्त। ५२२९ मूढ़ और व्युद्ग्राहित संबंधित कथानकों का विभाग। ५२३० दुष्ट, मूढ़ और व्युद्ग्राहित में दीक्षा के योग्य अयोग्य का विभाग और उसका कारण। ५२३१-५२३३ व्युद्ग्राहित आदि व्यक्तियों में चारित्रगुण कैसे हो ५१९७ ५१९८ अवायणिज्ज-वायणिज्ज-पदं सूत्र ६,७ अविनीत, विगय-प्रतिबद्ध और कलह को उपशांत नहीं करने वाला ये तीनों वाचना के लिए अयोग्य। अविनीत आदि तीनों को ग्रहण शिक्षा के अतिरिक्त शेष स्थानों में एकान्ततः प्रतिषेध का निषेध। विकृति प्रतिबद्ध अविनीत को वाचना देने पर प्रायश्चित्त विधि तथा आपवादिक कारणों में वाचना देने का निर्देश। ५१९९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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